गुरुवार, 25 मार्च 2010

राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों हेतु पुस्तकों का आमंत्रण

शीर्षस्थ ऐतिहासिक उपन्यासकार, कवि, चित्रकार एवं साठ महत्वपूर्ण ग्रन्थों के सर्जक स्व0 अम्बिकाप्रसाद ‘दिव्य’ की स्मृति में साहित्य सदन भोपाल द्वारा अनेक साहित्यिक पुरस्कार प्रदान किये जाने हेतु पुस्तकें आमंत्रित हैं।
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पुरस्कार निम्न विधाओं में दिये जाने हैं---

1) उपन्यास विधा हेतु ------- पाँच हजार रुपये
2) कहानी विधा हेतु ------- दो हजार एक सौ रुपये
3) काव्य विधा हेतु ------- दो हजार एक सौ रुपये
4) नाटक, व्यंग्य, ललित-निबंध,
पत्रकारिता, बाल-साहित्य,
लोक-साहित्य, लघुकथा,
शोध ग्रंथ, दिव्य साहित्य पर शोध,
समालोचना एवं साहित्यिक पत्रिकाओं हेतु -------- दिव्य रजत अलंकरण
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पुस्तकें जनवरी 2007 से दिसम्बर 2009 के मध्य प्रकाशित होनी चाहिए।
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--- पुरस्कार हेतु आवेदन के साथ प्रेषित की जाने वाली सामग्री---

1) पुस्तकों की दो प्रतियाँ
2) प्रत्येक प्रविष्टि के साथ प्रवेश शुल्क रु0 एक सौ (100/)
3) लेखक/सम्पादक के दो रंगीन चित्र
4) लेखक/सम्पादक का परिचय

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-- विशेष--

1) साहित्यिक पत्रिकाओं के तीन अंकों की दो-दो प्रतियाँ भेजनी होंगी।
2) पुस्तकों के किसी भी पृष्ठ पर कुछ भी न लिखें।
3) पुरस्कार हेतु प्राप्त पुस्तकें लौटाई नहीं जायेंगीं।
4) प्राप्त पुस्तकों, साहित्यिक पत्रिकाओं का चयन एक निर्णायक मंडल द्वारा किया जायेगा और उसका निर्णय अंतिम होगा।

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अन्तिम तिथि --- 30 नवम्बर 2010
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प्रविष्टि पहुँचाने हेतु पता --

श्रीमती राजो किंजल्क,
साहित्य सदन,
प्लाट नं0 145-ए, सांईनाथ नगर,
सेक्टर ‘सी’, कोलार,
भोपाल (म0प्र0) पिन-462042
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विस्तृत जानकारी के लिए
‘दिव्य पुरस्कार’
के संयोजक श्री जगदीश किंजल्क से
मोबाइल 09977782777 तथा दूरभाष 0755-2494777
पर सम्पर्क किया जा सकता है।

शुक्रवार, 5 मार्च 2010

महेंद्रभटनागर 'साहित्यवाचस्पति' से अलंकृत

महेंद्रभटनागर 'साहित्यवाचस्पति' से अलंकृत
ग्वालियर।
हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग के प्रधानमंत्री विभूति मिश्र की सूचना के अनुसार, अपने जगन्नाथपुरी-अधिवेशन (२३ फ़रवरी २०१०) में डा. महेंद्रभटनागर को अपने सर्वोच्च अलंकरण 'साहित्यवाचस्पति' से अलंकृत किया है। उल्लेखनीय है कि हिन्दी के प्रगतिवादी आन्दोलन के शीर्ष कवियों में शुमार डा. महेंद्रभटनागर की रचनाओं के अनुवाद केवल भारतीय भाषाओं में ही नहीं; विश्व-भाषाओं में भी हुए हैं। ८४ वर्ष की दीर्घ आयु में भी आज वे एक युवा की भाँति लेखन-क्रम में सक्रिय हैं। हिन्दी और ग्वालियर के गौरव-पुरुष हैं वे।
— शैवाल सत्यार्थी
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ई-मेल से प्राप्त सूचना के आधार पर