शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

“लौ दर्दे दिल की” देवी नागरानी के ग़ज़ल संग्रह का लोकार्पण

“लौ दर्दे दिल की” ग़ज़ल संग्रह का लोकार्पण

१५ अगस्त २०१० को कुतुबनुमा एवं श्रुति सँवाद समिति द्वारा आयोजित समारिह के अंतरगत श्रीमती देवी नागरानी के ग़ज़ल संग्रह “लौ दर्दे दिल की” का लोकार्पण मुंबई में १५ अगस्त २०१०, शाम ५ बजे, आर. डी. नैशनल कालेज के कॉन्फ्रेन्स हाल श्री आर.पी.शर्मा महर्षि की अध्यक्षता में पूर्ण भव्यता के साथ संपन्न हुआ. कार्य दो सत्रों में हुआ पहला विमोचन, दूसरा काव्य गोष्टी.

समारोह की शुरूवात में मुख़्य महमानों ने दीप प्रज्वलित किया और श्री हरिशचंद्र ने सरस्वती वंदना की सुरमई प्रस्तुती की. अध्यक्षता का श्रेय श्री आर. पी शर्मा (पिंगलाचार्य) ने संभाला. मुख़्य महमान श्री नँदकिशोर नौटियाल (कार्याध्यक्ष-महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी एवं संपादक नूतन सवेरा), श्री इब्रहीम अशक (प्रसिद्ध गीतकार) जो किसी कारण न आ सके. श्री जलीस शेरवानी (लोकप्रिय साहित्यकार), “कुतुबनुमा” की संपादिका डा॰ राजम नटराजन पिलै रहे. देवी नागरानी जी ने सभी मुख़्य महमानों को पुष्प देकर सन्मान किया, जिसमें शामिल थे डा॰ गिरिजाशंकर त्रिवेदी, संतोश श्रीवास्तव, श्रीमती आशा व श्री गोपीचंद चुघ


आर पी शर्मा “महरिष” ने संग्रह का लोकार्पण किया और अपने वक्तव्य में यह ज़ाहिर किया कि साहित्यकार अपनी क़लम के माध्यम से लेखिनी द्वारा समाज को नई रोशनी देतने में सक्षम हैं. उसके पश्चात शास्त्रीय संगीतकार सुधीर मज़मूदार ने देवी जी की एक ग़ज़ल गाकर श्रोताओं को मुग्ध कर दिया…

“रहे जो ज़िंदगी भर साथ ऐसा हमसफ़र देना

मिले चाहत को चाहत वो दुआओं में असर देना”


कुतुबनुमा की संपादक डा॰ राजाम नटराजन पिल्लै ने अपने वक्तव्य में लेखन कला पर अपने विचार प्रकट करते हुए देवी जी के व्यक्तित्व व उनकी अनुभूतियों की शालीनता पर अपने विचार प्रस्तुत किये और उनके इस प्रयास को भी सराहते हुए रचनात्मक योगदान के लिये शुभकामनाएं पेश की. जलीस शेरवानी जनाब ने “लौ दर्दे दिल की” गज़लों के चंद पसंददीदा शेर सुनाकर ग़ज़ल की बारीकियों का विस्तार से उल्लेख भी किया और सिंधी समुदाय के योगदान का विवरण किया. नौटियाल जी ने आज़ादी के दिवस की शुभकामनायें देते हुए, देवी जी को इस संकलन के लिये बधाई व भकामनाएं दी.

देवी नागरानी ने अपनी बात रखते हुए सभी महमानों का धन्यवाद अता किया. आगे अपने विचार रखते हुए उन्होंने कहा “प्रवासी शब्द हमारी सोच में है. भारत के संस्कार, यहाँ की संस्क्रुति लेकर हम हिंदुस्तानी जहाँ भी जाते हैं वहीं एक मिनी भारत का निर्माण होता है जहाँ खड़े होकर हम अपने वतन की भाषा बोलते है, आज़ादी के दिवस पर वहां भी हिंदोस्तान का झँडा फहराते है, जन गन मन गाते है. हम भले ही वतन से दूर रहते हैं पर वतन हमसे दूर नहीं. हम हिंदोस्ताँ की संतान है, देश के वासी हैं, प्रवासी नहीं. ” और अपनी एक ग़ज़ल ला पाठ किया..

“पहचानता है यारो हमको जहान सारा

हिंदोस्ताँ के हम हैं, हिंदोस्ताँ हमारा.”

पहले सत्र में संचालान का भार श्री अनंत श्रीमाली ने अपने ढंग से खूब निभाया . देवी जी ने पुष्प गुच्छ से उनका स्वागत करते हुए उनका धन्यवाद अता किया.

द्वतीय सत्र में संचालान की बागडौर अंजुमन संस्था के अध्यक्ष एवं प्रमुख शायर खन्ना मुज़फ्फ़रपुरी जी ने बड़ी ही रोचकतपूर्ण अंदाज़ से संभाली। और इस कार्य के और समारोह में वरिष्ट साहित्यकार व महमान थेः श्री सागर त्रिपाठी, श्री अरविंद राही, (अध्यक्ष‍ श्रुति संवाद साहित्य कला अकादमी), श्री गिरिजा शंजकर त्रिवेदी (नवनीत के पूर्व संपादक), श्री उमाकांत बाजपेयी, हारिराम चौधरी, राजश्री प्रोडक्शन के मालिक श्री राजकुमार बड़जातिया, संजीव निगम, श्री मुस्तकीम मक्की (हुदा टाइम्स के संपादक)व जाने माने उर्दू के शायर श्री उबेद आज़म जिन्होंने इस शेर को बधाई स्वरूप पेश किया. …

अँधेरे ज़माने में बेइंतिहा है

बहुत काम आएगी लौ दर्दे-दिल की “..उब्बेद आज़म

सभी कवियों, कवित्रियों ने अपनी अपनी रचनात्मक अभिव्यक्तियों से समां बांधे रखा. कविता पाठ की सरिता में शामिल रहे श्री सागार त्रिपाठी जिन्होने अपने छंदो की सरिता की रौ में श्रोताओं को ख़ूब आनंद प्रदान किया. कड़ी से कड़ी जोड़ते रहे श्री अरविंद राही, लक्ष्मण दुबे, श्री मुरलीधर पांडेय, शढ़ीक अब्बासी, देवी नागरानी, श्री शिवदत्त अक्स, गीतकार कुमार शैलेंद्र, नंदकुमार व्यास, राजम पिल्लै, मरियम गज़ाला, रेखा किंगर, नीलिमा डुबे, काविता गुप्ता, श्री राम प्यारे रघुवंशी, संजीव निगम, संगीता सहजवाणी, शिवदत “अक्स”, कपिल कुमार, सुष्मा सेनगुप्ता, और शील निगम, ज्यिति गजभिये.

श्रोताओं ने काव्य सुधा का पूर्ण आनंद लेते रहे श्री गिरीश जोशी, प्रमिला शर्मा, प्रो॰ लखबीर वर्मा, मेघा श्रीमाली, पं॰ महादेव मिश्रा, संतोष श्रीवास्तव, प्रमिला वर्मा, पंडित महादेव मिश्रा, रवि रश्मि अनुभूति, शिप्र वर्मा, राजेश विक्रांत, मुमताज़ खान, वी. न. ढोली, लक्ष्मी यादव, प्रकाश माखिजा, शकुंतला शर्मा, इकबाल मोम राजस्तानी, श्याम कुमार श्याम, सतीश शुक्ल, सिकंदर हयात खान, अमर ककड़, विभा पांडेय, शिल्पा सोनटके, अमर मंजाल, कान्ता, लक्ष्मी सिंह, रत्ना झा, गोपीचंद चुघ, आशा चुघ, संगीता सहजवानी, प्रो॰ शोभा बंभवानी, देवीदास व लता सजनानी, गिरीश जोशी. करनानी जी, कवि कुलवंत. त्रिलोचन अरोड़ा, नंदलाल थापर, श्रीमती किरण जोशी, सोफिया सिद्दिकी, रजनिश दुबे और सुनील शुक्ला. सुर सरिता का अंतिम चरण शुक्रगुज़ारी के साथ समाप्त हुआ. आज़ादी का जश्न खुशियों के परचम हर चहरे पर फहराता रहा..समाप्ति एक शुभ आरंभ है. जयहिंद.