बुधवार, 15 दिसंबर 2010

देहावसान -- वयोवृद्ध शिक्षाविद-अर्थशास्त्री प्रो. सत्यसहाय श्रीवास्तव

देहावसान :

वयोवृद्ध शिक्षाविद-अर्थशास्त्री प्रो. सत्यसहाय श्रीवास्तव

संजीव वर्मा 'सलिल'

बिलासपुर, छत्तीसगढ़ २८.११.२०१०. स्थानीय अपोलो चिकित्सालय में आज देर रात्रि विख्यात अर्थशास्त्री, छत्तीसगढ़ राज्य में महाविद्यालायीन शिक्षा के सुदृढ़ स्तम्भ रहे अर्थशास्त्र की ३ उच्चस्तरीय पुस्तकों के लेखक, प्रादेशिक कायस्थ महासभा मध्यप्रदेश के पूर्व प्रांतीय अध्यक्ष रोटेरियन, लायन प्रो. सत्य सहाय का लम्बी बीमारी के पश्चात् देहावसान हो गया. खेद है कि छत्तीसगढ़ की राज्य सरकार आपने प्रदेश के इस गौरव पुरुष के प्रति पूरी तरह अनभिज्ञ तथा असावधान रही. वर्ष १९९४ से पक्षाघात (लकवे) से पीड़ित प्रो. सहाय शारीरिक पीड़ा को चुनौती देते हुए भी सतत सृजन कर्म में संलग्न रहे. शासन सजग रहकर उन्हें राजकीय अतिथि के नाते एम्स दिल्ली या अन्य उन्नत चिकित्सालय में भेजकर श्रेष्ठ विशेषज्ञों की सेवा उपलब्ध कराता तो वे रोग-मुक्त हो सकते थे.

१६ वर्षों से लगातार पक्षाघात (लकवा) ग्रस्त तथा शैयाशाई होने पर भी उनके मन-मष्तिष्क न केवल स्वस्थ्य-सक्रिय रहा अपितु उनमें सर्व-हितार्थ कुछ न कुछ करते रहने की अनुकरणीय वृत्ति भी बनी रही. वे लगातार न केवल अव्यवसायिक सामाजिक पत्रिका 'संपर्क' का संपादन-प्रकाशन करते रहे अपितु इसी वर्ष उन्होंने 'राम रामायण' शीर्षक लघु पुस्तक का लेखन-प्रकाशन किया था. इसमें रामायण का महत्त्व, रामायण सर्वप्रथम किसने लिखी, शंकर जी द्वारा तुलसी को रामकथा साधारण बोल-चाल की भाषा में लिखने की सलाह, जब तुलसी को हनुमानजी ने श्रीराम के दर्शन करवाये, रामकथा में हनुमानजी की उपस्थिति, सीताजी का पृथ्वी से पैदा होना, रामायण कविता नहीं मंत्र, दशरथ द्वारा कैकेयी को २ वरदान, श्री राम द्वारा श्रीभरत को अयोध्या की गद्दी सौपना, श्री भारत द्वारा कौशल्या को सती होने से रोकना, रामायण में सर्वाधिक उपेक्षित पात्र उर्मिला, सीता जी का दूसरा वनवास, रामायण में सुंदरकाण्ड, हनुमानजी द्वारा शनिदेव को रावण की कैद से मुक्त कराना, परशुराम प्रसंग की सचाई, रावण के अंतिम क्षण, लव-कुश काण्ड, सीताजी का पृथ्वी की गोद में समाना, श्री राम द्वारा बाली-वध, शूर्पनखा-प्रसंग में श्री राम द्वारा लक्ष्मण को कुँवारा कहा जाना, श्री रामेश्वरम की स्थापना, सीताजी की स्वर्ण-प्रतिमा, रावण के वंशज, राम के बंदर, कैकेई का पूर्वजन्म, मंथरा को अयोध्या में रखेजाने का उद्देश्य, मनीराम की छावनी, पशुओं के प्रति शबरी की करुणा, सीताजी का राजयोग न होना, सीताजी का रावण की पुत्री होना, विभीषण-प्रसंग, श्री राम द्वारा भाइयों में राज्य-विभाजन आदि जनरूचि के रोचक प्रसंगों का उल्लेख किया है. गागर में सागर की तरह विविध प्रसंगों को समेटे यह कृति प्रो. सहाय की जिजीविषा का पुष्ट-प्रमाण है.

प्रो. सत्यसहाय जीवंत व्यक्तित्व, कर्मठ कृतित्व तथा मौलिक मतित्व की त्रिविभूति-संपन्न ऐसे व्यक्तित्व थे जिन पर कोई भी राज्य-सत्ता गर्व कर सकती है. ग्राम रनेह (राजा नल से समबन्धित ऐतिहासिक नलेह), तहसील हटा (राजा हट्टेशाह की नगरी), जिला दमोह (रानी दमयन्ती की नगरी) में जन्में, बांदकपुर स्थित उपज्योतिर्लिंग जागेश्वरनाथ पुण्य भूमि के निवासी संपन्न-प्रतिष्ठित समाजसेवी स्व. सी.एल. श्रीवास्तव तथा धर्मपरायण स्व. महारानी देवी के कनिष्ठ पुत्र सत्यसहाय की प्राथमिक शिक्षा रनेह, ग्राम, उच्चतर माध्यमिक शिक्षा दमोह तथा महाविद्यालयीन शिक्षा इलाहाबाद में अग्रज स्व. पन्नालाल श्रीवास्तव (आपने समय के प्रखर पत्रकार, दैनिक लीडर तथा अमृत बाज़ार पत्रिका के उपसंपादक, पत्रकारिता पर महत्वपूर्ण पुस्तक के लेखक) के सानिंध्य में पूर्ण हुई. अग्रज के पद-चिन्हों पर चलते हुए पत्रकारिता के प्रति लगाव स्वाभाविक था. उनके कई लेख, रिपोर्ताज, साक्षात्कार आदि प्रकाशित हुए. वे लीडर पत्रिका के फ़िल्मी स्तम्भ के संपादक रहे. उनके द्वारा फ़िल्मी गीत-गायक स्व. मुकेश व गीता राय का साक्षात्कार बहुचर्चित हुआ.

उन्हीं दिनों महात्मा गाँधी के निजी सचिव स्व. महेशदत्त मिश्र पन्नालाल जी के साथ रहकर राजनीति शास्त्र में एम.ए. कर रहे थे. तरुण सत्यसहाय को गाँधी जी की रेलयात्रा के समय बकरीका ताज़ा दूध पहुँचाने का दायित्व मिला. गाँधी जी की रेलगाड़ी इलाहाबाद पहुँची तो भरी भीड़ के बीच छोटे कद के सत्यसहाय जी नजर नहीं आये, रेलगाड़ी रवाना होने का समय हो गया तो मिश्रजी चिंतित हुए, उन्होंने आवाज़ लगाई 'सत्य सहाय कहाँ हो? दूध लाओ.' भीड़ में घिरे सत्यसहाय जी जोर से चिल्लाये 'यहाँ हूँ' और उन्होंने दूध का डिब्बा ऊपर उठाया, लोगों ने देखा मिश्र जी डब्बा पकड़ नहीं पा रहे और रेलगाड़ी रेंगने लगी तो कुछ लम्बे लोगों ने सहाय जी को ऊपर उठाया, मिश्र जी ने लपककर डब्बा पकड़ा. बापू ने खिड़की से यह दृश्य देखा तो खिड़कीसे हाथ निकालकर उन्हें आशीर्वाद दिया. मिश्रा जी के सानिंध्य में वे अनेक नेताओं से मिले. सन १९४८ में अर्थशास्त्र में एम.ए. करने के पश्चात् नव स्वतंत्र देश का भविष्य गढ़ने और अनजाने क्षेत्रों को जानने-समझने की ललक उन्हें बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ले आयी.

पन्नालाल जी अमृत बाज़ार पत्रिका और लीडर जैसे राष्ट्रीय अंग्रेजी अख़बारों में संवाददाता और उपसंपादक रहे थे. वे मध्य प्रान्त और विदर्भ के नेताओं को राष्ट्री क्षितिज में उभारने में ही सक्रिय नहीं रहे अपितु मध्य अंचल के तरुणों को अध्ययन और आजीविका जुटने में भी मार्गदर्शक रहे. विख्यात पुरातत्वविद राजेश्वर गुरु उनके निकट थे, जबलपुर के प्रसिद्द पत्रकार रामेश्वर गुरु को अपना सहायक बनाकर पन्नालाल जी ने संवाददाता बनाया था. कम लोग जानते हैं मध्य-प्रदेश उच्च न्यायालय के विद्वान् अधिवक्ता श्री राजेंद्र तिवारी भी प्रारंभ में प्रारंभ में पत्रकार ही थे. उन्होंने बताया कि वे स्थानीय पत्रों में लिखते थे. गुरु जी का जामाता होने के बाद वे पन्नालाल जी के संपर्क में आये तो पन्नालाल जी ने अपना टाइपराइटर उन्हें दिया तथा राष्ट्रीय अख़बारों से रिपोर्टर के रूप में जोड़ा. अपने अग्रज के घर में अंचल के युवकों को सदा आत्मीयता मिलते देख सत्य सहाय जी को भी यही विरासत मिली.

आदर्श शिक्षक तथा प्रशासनविद:

बुंदेलखंड में कहावत है 'जैसा पियो पानी, वैसी बोलो बनी, जैसा खाओ अन्न, वैसा होए मन'- सत्यसहाय जी के व्यक्तित्व में सुनार नदी के पानी साफगोई, नर्मदाजल की सी निर्मलता व गति तथा गंगाजल की पवित्रता तो थी ही बिलासपुर छत्तीसगढ़ में बसनेपर अरपा नदीकी देशजता और शिवनाथ नदीकी मिलनसारिता सोने में सुहागा की तरह मिल गई. वे स्थानीय एस.बी.आर. महाविद्यालय में अर्थशास्त्र के व्याख्याता हो गये. उनका प्रभावशाली व्यक्तित्व, सरस-सटीक शिक्षण शैली, सामयिक उदाहरणों से विषय को समझाने तथा विद्यार्थी की कठिनाई को समझकर सुलझाने की प्रवृत्ति ने उन्हें सर्व-प्रिय बना दिया. जहाँ पहले छात्र अर्थशास्त्र विषय से दूर भागते थे, अब आकर्षित होने लगे. सन १९६४ तक उनका नाम स्थापित तथा प्रसिद्ध हो चुका था. इस मध्य १९५८ से १९६० तक उन्होंने नव-स्थापित 'ठाकुर छेदीलाल महाविद्यालय जांजगीर' के प्राचार्य का चुनौतीपूर्ण दायित्व सफलतापूर्वक निभाया और महाविद्यालय को सफलता की राह पर आगे बढ़ाया. उस समय शैक्षणिक दृष्टि से सर्वाधिक पिछड़े राज्य छत्तीसगढ़ में उच्च शिक्षा की दीपशिखा प्रज्वलित करनेवालों में अग्रगण्य स्व. सत्य सहाय अपनी मिसाल आप थे.जांजगीर महाविद्यालय सफलतापूर्वक चलने पर वे वापिस बिलासपुर आये तथा योजना बनाकर एक अन्य ग्रामीण कसबे खरसिया के विख्यात राजनेता-व्यवसायी स्व. लखीराम अग्रवाल प्रेरित कर महाविद्यालय स्थापित करने में जुट गये. लम्बे २५ वर्षों तक प्रांतीय सरकार से अनुदान प्राप्तकर यह महाविद्यालय शासकीय महाविद्यालय बन गया. इस मध्य प्रदेश में विविध दलों की सरकारें बनीं... लखीराम जी तत्कालीन जनसंघ से जुड़े थे किन्तु सत्यसहाय जी की समर्पणवृत्ति, सरलता, स्पष्टता तथा कुशलता के कारण यह एकमात्र महाविद्यालय था जिसे हमेशा अनुदान मिलता रहा.

उन्होंने रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर में अधिष्ठाता छात्र-कल्याण परिषद्, अधिष्ठाता महाविद्यालयीन विकास परिषद् तथा निदेशक जनजाति प्रशासनिक सेवा प्रशिक्षण के रूप में भी अपनी कर्म-कुशलता की छाप छोड़ी.
आपके विद्यार्थियों में स्व. बी.आर. यादव, स्व. राजेंद्र शुक्ल. श्री अशोक राव, श्री सत्यनारायण शर्मा आदि अविभाजित मध्यप्रदेश / छतीसगढ़ के कैबिनेट मंत्री, पुरुषोत्तम कौशिक केन्द्रीय मंत्री तथा स्व. श्रीकांत वर्मा सांसद और राष्ट्रीय राजनीति के निर्धारक रहे. अविभाजित म.प्र. के वरिष्ठ नेता स्वास्थ्य मंत्री स्व. डॉ. रामाचरण राय, शिक्षामंत्री स्व. चित्रकांत जायसवाल से उनके पारिवारिक सम्बन्ध थे. उनके अनेक विद्यार्थी उच्चतम प्रशासनिक पदों पर तथा कई कुलपति, प्राचार्य, निदेशक आदि भी हुए किन्तु सहाय जी ने कभी किसीसे नियम के विपरीत कोई कार्य नहीं कराया. अतः उन्होंने सभी से सद्भावना तथा सम्मान पाया.

सक्रिय समाज सेवी:

प्रो. सत्यसहाय समर्पित समाज सुधारक भी थे. उन्होंने छतीसगढ़ अंचल में लड़कियों को शिक्षा से दूर रखने की कुप्रथा से आगे बढ़कर संघर्ष किया. ग्रामीण अंचल में रहकर तथा सामाजिक विरोध सहकर भी उन्होंने न केवल अपनी ४ पुत्रियों को स्नातकोत्तर शिक्षा दिलाई अपितु २ पुत्रियों को महाविद्यालयीन प्राध्यापक बनने हेतु प्रोत्साहित तथा विवाहोपरांत शोधकार्य हेतु सतत प्रेरित किया. इतना ही नहीं उन्होंने अपने संपर्क के सैंकड़ों परिवारों को भी लड़कियों को पढ़ाने की प्रेरणा दी.

स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति के पश्चात् वे सामाजिक ऋण-की अदायगी करने में जुट गये. प्रादेशिक चित्रगुप्त महासभा मध्य प्रदेश के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने जबलपुर, बरमान (नरसिंहपुर), उज्जैन, दमोह, बालाघाट, बिलासपुर आदि अनेक स्थानों पर युवक-युवती, परिचय सम्मलेन, मितव्ययी दहेज़रहित सामूहिक आदर्श विवाह सम्मलेन आदि आयोजित कराये. वैवाहिक जानकारियाँ एकत्रित कर चित्राशीष जबलपुर तथा संपर्क बिलासपुर पत्रिकाओं के माध्यम से उन्होंने अभिभावकों को उपलब्ध कराईं.
विविध काल खण्डों में सत्यसहाय जी ने लायन तथा रोटरी क्लबों के माध्यम से भी सामाजिक सेवा की अनेक योजनाओं को क्रियान्वित कर अपूर्व सदस्यतावृद्धि हेतु श्रेष्ठ गवर्नर पदक प्राप्त किये. वे जो भी कार्य करते थे दत्तचित्त होकर लक्ष्य पाने तक करते थे.

छतीसगढ़ शासन जागे :

बिलासपुर तथा छत्तीसगढ़ के विविध अंचलों में प्रो. असत्य सहाय के निधन का समाचार पाते ही शोक व्याप्त हो गया. छतीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश के अनेक महाविद्यालयों ने उनकी स्मृति में शोक प्रस्ताव पारित किये. अभियान सांस्कृतिक-साहित्यिक संस्था जबलपुर, रोटरी क्राउन जबलपुर, रोटरी क्लब बिलासपुर, रोटरी क्लब खरसिया, लायंस क्लब खरसिया, अखिल भारतीय कायस्थ महासभा, सनातन कायस्थ महापरिवार मुम्बई, विक्रम महाविद्यालय उज्जैन, शासकीय महाकौशल महाविद्यालय जबलपुर, कायस्थ समाज बिलासपुर, कायस्थ कल्याण परिषद् बिलासपुर, कायस्थ सेना जबलपुर आदि ने प्रो. सत्यसहाय के निधन पर श्रैद्धांजलि व्यक्त करते हुए उन्हें युग निर्माता निरूपित किया है. छत्तीसगढ़ शासन से अपेक्षा है कि खरसिया महाविद्यालय में उनकी प्रतिमा स्थापित की जाये तथा रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर एवं गुरु घासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर में अर्थशास्त्र विषयक उच्च शोध कार्यों हेतु प्रो. सत्यसहाय शोधपीठ की स्थापना की जाए.

दिव्यनर्मदा परिवार प्रो. सत्यसहाय के ब्रम्हलीन होने को शोक का कारण न मानते हुए इसे देह-धर्म के रूप में विधि के विधान के रूप में नत शिर स्वीकारते हुए संकल्प लेता है कि दिवंगत के आदर्शों के क्रियान्वयन हेतु सतत सक्रिय रहेगा. हिन्दी को विश्व भाषा के रूप में विकसित करने की प्रो. सत्यसहाय की मनोकामना को मूर्तरूप देने के लिये सतत प्रयास जारी रहेंगे. आप सब इस पुनी कार्य में सहयोगी हों, यही सच्ची कर्मांजलि होगी.


शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

“लौ दर्दे दिल की” देवी नागरानी के ग़ज़ल संग्रह का लोकार्पण

“लौ दर्दे दिल की” ग़ज़ल संग्रह का लोकार्पण

१५ अगस्त २०१० को कुतुबनुमा एवं श्रुति सँवाद समिति द्वारा आयोजित समारिह के अंतरगत श्रीमती देवी नागरानी के ग़ज़ल संग्रह “लौ दर्दे दिल की” का लोकार्पण मुंबई में १५ अगस्त २०१०, शाम ५ बजे, आर. डी. नैशनल कालेज के कॉन्फ्रेन्स हाल श्री आर.पी.शर्मा महर्षि की अध्यक्षता में पूर्ण भव्यता के साथ संपन्न हुआ. कार्य दो सत्रों में हुआ पहला विमोचन, दूसरा काव्य गोष्टी.

समारोह की शुरूवात में मुख़्य महमानों ने दीप प्रज्वलित किया और श्री हरिशचंद्र ने सरस्वती वंदना की सुरमई प्रस्तुती की. अध्यक्षता का श्रेय श्री आर. पी शर्मा (पिंगलाचार्य) ने संभाला. मुख़्य महमान श्री नँदकिशोर नौटियाल (कार्याध्यक्ष-महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी एवं संपादक नूतन सवेरा), श्री इब्रहीम अशक (प्रसिद्ध गीतकार) जो किसी कारण न आ सके. श्री जलीस शेरवानी (लोकप्रिय साहित्यकार), “कुतुबनुमा” की संपादिका डा॰ राजम नटराजन पिलै रहे. देवी नागरानी जी ने सभी मुख़्य महमानों को पुष्प देकर सन्मान किया, जिसमें शामिल थे डा॰ गिरिजाशंकर त्रिवेदी, संतोश श्रीवास्तव, श्रीमती आशा व श्री गोपीचंद चुघ


आर पी शर्मा “महरिष” ने संग्रह का लोकार्पण किया और अपने वक्तव्य में यह ज़ाहिर किया कि साहित्यकार अपनी क़लम के माध्यम से लेखिनी द्वारा समाज को नई रोशनी देतने में सक्षम हैं. उसके पश्चात शास्त्रीय संगीतकार सुधीर मज़मूदार ने देवी जी की एक ग़ज़ल गाकर श्रोताओं को मुग्ध कर दिया…

“रहे जो ज़िंदगी भर साथ ऐसा हमसफ़र देना

मिले चाहत को चाहत वो दुआओं में असर देना”


कुतुबनुमा की संपादक डा॰ राजाम नटराजन पिल्लै ने अपने वक्तव्य में लेखन कला पर अपने विचार प्रकट करते हुए देवी जी के व्यक्तित्व व उनकी अनुभूतियों की शालीनता पर अपने विचार प्रस्तुत किये और उनके इस प्रयास को भी सराहते हुए रचनात्मक योगदान के लिये शुभकामनाएं पेश की. जलीस शेरवानी जनाब ने “लौ दर्दे दिल की” गज़लों के चंद पसंददीदा शेर सुनाकर ग़ज़ल की बारीकियों का विस्तार से उल्लेख भी किया और सिंधी समुदाय के योगदान का विवरण किया. नौटियाल जी ने आज़ादी के दिवस की शुभकामनायें देते हुए, देवी जी को इस संकलन के लिये बधाई व भकामनाएं दी.

देवी नागरानी ने अपनी बात रखते हुए सभी महमानों का धन्यवाद अता किया. आगे अपने विचार रखते हुए उन्होंने कहा “प्रवासी शब्द हमारी सोच में है. भारत के संस्कार, यहाँ की संस्क्रुति लेकर हम हिंदुस्तानी जहाँ भी जाते हैं वहीं एक मिनी भारत का निर्माण होता है जहाँ खड़े होकर हम अपने वतन की भाषा बोलते है, आज़ादी के दिवस पर वहां भी हिंदोस्तान का झँडा फहराते है, जन गन मन गाते है. हम भले ही वतन से दूर रहते हैं पर वतन हमसे दूर नहीं. हम हिंदोस्ताँ की संतान है, देश के वासी हैं, प्रवासी नहीं. ” और अपनी एक ग़ज़ल ला पाठ किया..

“पहचानता है यारो हमको जहान सारा

हिंदोस्ताँ के हम हैं, हिंदोस्ताँ हमारा.”

पहले सत्र में संचालान का भार श्री अनंत श्रीमाली ने अपने ढंग से खूब निभाया . देवी जी ने पुष्प गुच्छ से उनका स्वागत करते हुए उनका धन्यवाद अता किया.

द्वतीय सत्र में संचालान की बागडौर अंजुमन संस्था के अध्यक्ष एवं प्रमुख शायर खन्ना मुज़फ्फ़रपुरी जी ने बड़ी ही रोचकतपूर्ण अंदाज़ से संभाली। और इस कार्य के और समारोह में वरिष्ट साहित्यकार व महमान थेः श्री सागर त्रिपाठी, श्री अरविंद राही, (अध्यक्ष‍ श्रुति संवाद साहित्य कला अकादमी), श्री गिरिजा शंजकर त्रिवेदी (नवनीत के पूर्व संपादक), श्री उमाकांत बाजपेयी, हारिराम चौधरी, राजश्री प्रोडक्शन के मालिक श्री राजकुमार बड़जातिया, संजीव निगम, श्री मुस्तकीम मक्की (हुदा टाइम्स के संपादक)व जाने माने उर्दू के शायर श्री उबेद आज़म जिन्होंने इस शेर को बधाई स्वरूप पेश किया. …

अँधेरे ज़माने में बेइंतिहा है

बहुत काम आएगी लौ दर्दे-दिल की “..उब्बेद आज़म

सभी कवियों, कवित्रियों ने अपनी अपनी रचनात्मक अभिव्यक्तियों से समां बांधे रखा. कविता पाठ की सरिता में शामिल रहे श्री सागार त्रिपाठी जिन्होने अपने छंदो की सरिता की रौ में श्रोताओं को ख़ूब आनंद प्रदान किया. कड़ी से कड़ी जोड़ते रहे श्री अरविंद राही, लक्ष्मण दुबे, श्री मुरलीधर पांडेय, शढ़ीक अब्बासी, देवी नागरानी, श्री शिवदत्त अक्स, गीतकार कुमार शैलेंद्र, नंदकुमार व्यास, राजम पिल्लै, मरियम गज़ाला, रेखा किंगर, नीलिमा डुबे, काविता गुप्ता, श्री राम प्यारे रघुवंशी, संजीव निगम, संगीता सहजवाणी, शिवदत “अक्स”, कपिल कुमार, सुष्मा सेनगुप्ता, और शील निगम, ज्यिति गजभिये.

श्रोताओं ने काव्य सुधा का पूर्ण आनंद लेते रहे श्री गिरीश जोशी, प्रमिला शर्मा, प्रो॰ लखबीर वर्मा, मेघा श्रीमाली, पं॰ महादेव मिश्रा, संतोष श्रीवास्तव, प्रमिला वर्मा, पंडित महादेव मिश्रा, रवि रश्मि अनुभूति, शिप्र वर्मा, राजेश विक्रांत, मुमताज़ खान, वी. न. ढोली, लक्ष्मी यादव, प्रकाश माखिजा, शकुंतला शर्मा, इकबाल मोम राजस्तानी, श्याम कुमार श्याम, सतीश शुक्ल, सिकंदर हयात खान, अमर ककड़, विभा पांडेय, शिल्पा सोनटके, अमर मंजाल, कान्ता, लक्ष्मी सिंह, रत्ना झा, गोपीचंद चुघ, आशा चुघ, संगीता सहजवानी, प्रो॰ शोभा बंभवानी, देवीदास व लता सजनानी, गिरीश जोशी. करनानी जी, कवि कुलवंत. त्रिलोचन अरोड़ा, नंदलाल थापर, श्रीमती किरण जोशी, सोफिया सिद्दिकी, रजनिश दुबे और सुनील शुक्ला. सुर सरिता का अंतिम चरण शुक्रगुज़ारी के साथ समाप्त हुआ. आज़ादी का जश्न खुशियों के परचम हर चहरे पर फहराता रहा..समाप्ति एक शुभ आरंभ है. जयहिंद.

सोमवार, 20 सितंबर 2010

शब्दकार का इतिहास --- 300 वीं पोस्ट का प्रकाशन


शब्दकार ब्लॉग का आरम्भ 01 मार्च 2009 को किया गया था। तबसे लेकर आजतक इसके साथ उतार-चढ़ाव वाला समय भी आता रहा। एक बारगी बीच में ऐसा भी समय आया जबकि इसका संचालन बन्द करने का भी विचार बना। शब्दकार के लगभग सभी साथियों की ओर से इसको बन्द न करने का सुझाव दिया गया।

अपनी छोटी सी यात्रा में शब्दकार ब्लॉग जगत में कहाँ स्थित है यह तो आकलन आप सुधी पाठकजन ही करें। अपनी व्यस्तता के बीच समय निकाल कर देखा तो पाया कि शब्दकार पर 300वीं पोस्ट का प्रकाशन हो चुका है।

इस 300वीं पोस्ट का प्रकाशन इसी 10 सितम्बर 2010 को हुआ। इस पोस्ट के रचनाकार ब्लॉग जगत के सम्माननीय आचार्य संजीवसलिलजी हैं। तीन सौवीं पोस्ट भी कविता रही जिसका शीर्षक था जीवनअंगना को महकाया आचार्य संजीव ‘सलिल’ जी के साथ शब्दकार का अजब संयोग जुड़ा हुआ है। इसको आप शब्दकार के संक्षिप्त इतिहास के द्वारा देख-समझ सकते हैं।

लगभग बारह दिनों पूर्व शब्दकार की तीन सौवीं पोस्ट के प्रकाशन होने के पूर्व एक दिन पोस्ट का सम्पादन करते समय देखा था कि जल्द ही शब्दकार पर तीन सौवीं पोस्ट किसी न किसी के द्वारा प्रकाशित होगी। पहले सोचा कि इस बात को सबके बीच बाँट कर तीन सौवीं पोस्ट लिखने वालों को आमंत्रित किया जाये फिर विचार आया कि नहीं देखते हैं कि किस शब्दकार साथी की पोस्ट 300 का आँकड़ा छूती है।

आइये अब एक निगाह शब्दकार की संक्षिप्त सी यात्रा पर भी डाल लें और इसके विकास की राह को और प्रशस्त करें।

शब्दकार की पहली पोस्ट का प्रकाशन हुआ था 01 मार्च 2009 को। इस पहली पोस्ट के रचनाकार थे डॉ0 ब्रजेश कुमार और इनके द्वारा एक कविता प्रकाशनार्थ प्रेषित की गई थी। इस कविता का शीर्षक था--लो पुनः मधुमास आया।

यहाँ सुधी पाठकों को याद दिला दें कि पहले शब्दकार में पोस्ट का प्रकाशन शब्दकार के संचालक डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर के द्वारा होता था। बाद में रचनाकारों की अधिक से अधिक सहभागिता को सुनिश्चित करने के लिए इस ब्लॉग को सामुदायिक ब्लॉग के रूप में संचालित करना शुरू किया। शब्दकार का सामुदायिक संचालन 15 अगस्त 2009 से किया गया।

सामुदायिक ब्लॉग के रूप में शुरू होने के बाद पहली पोस्ट का प्रकाशन 16 अगस्त 2009 को एक कविता के रूप में हुआ। सरस्वती वंदना के द्वारा प्रकाशित होने वाली पहली रचना के साथ ब्लॉग जगत के माननीय आचार्य संजीवसलिलजी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ।

इसके बाद से लगातार शब्दकार साथियों के द्वारा रचनाओं का प्रकाशन होता रहा। शब्दकार में इसके बाद भी पूर्व की भाँति उन रचनाकारों की भी रचनाओं का प्रकाशन होता रहा जो शब्दकार के सदस्य नहीं बने थे।

शब्दकार की सौवीं पोस्ट के रूप में डॉ0 अनिल चड्डा की कविताओंतेरा वजूदऔरतेरा इन्तजार को स्थान मिला। इन कविताओं को दिनांक 08 जुलाई 2009 को शब्दकार संचालक द्वारा ही प्रकाशित किया गया था। ध्यातव्य रहे कि तब तक शब्दकार का संचालन सामुदायिक रूप में शुरू नहीं हुआ था।

शब्दकार की दो सौवीं पोस्ट के रूप में भी एक कविता को स्थान मिला और इस बार भी रचनाकार रहे आचार्य संजीवसलिलजी। इस बार उनकी बाल कविता थी बंदर मामा और तारीख रही 30 जनवरी 2010।

शब्दकार की यात्रा धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ रही थी और लगातार रचनाओं को प्रकाशनार्थ संचालक द्वारा मंगवाया भी जा रहा था। शब्दकार के सदस्य साथियों के अलावा भी अन्य ब्लॉगर मित्र अपनी रचनाओं को प्रकाशनार्थ प्रेषित कर रहे थे।

इस बीच वह भी समय आया जबकि शब्दकार में 300 वीं पोस्ट का प्रकाशन हुआ। इस पोस्ट के बारे में विवरण आप ऊपर पढ़ ही चुके हैं।

सभी सदस्य साथियों को, अन्य मित्रों को जो रचनाएँ प्रकाशनार्थ भेजते हैं, पाठकों को, शब्दकार की रचनाओं पर टिप्पणी करने वालों का आभार, बधाईयाँ और शुभकामनाएँ। आप सभी के सहयोग की इसी तरह आवश्यकता रहेगी। भावी योजनाओं में विचार है कि शीघ्र ही एक शब्दकारआयोजन करवाया जायेगा जिसमें सभी साथियों को आमन्त्रित करके सम्मानित करने की योजना है (यदि आर्थिक संसाधन साथ देते रहे)

शुभकामनाएँ आप भी भेजिए शेष तो भविष्य के गर्भ में छिपा है।

शब्दकार के सदस्य साथी ------

शनिवार, 4 सितंबर 2010

गाँधी जी पर आधारित हिन्दी फिल्म का शुभारम्भ पोर्टब्लेयर में


गाँधी जी पर आधारित हिन्दी फिल्म का शुभारम्भ पोर्टब्लेयर में


आइलैंड फिल्म प्रोडक्शन के द्वारा गाँधी जी पर आधारित एक हिन्दी फिल्म का शुभारम्भ पोर्टब्लेयर में हुआ। फिल्म की कथा, निर्माण एवं निर्देशन नरेश चन्द्र लाल द्वारा किया जा रहा है। कई राष्ट्रीय पुरस्कारों के विजेता श्री लाल की अंडमान आधारित ‘अमृत जल‘ फिल्म चर्चा में रही है। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के डाक निदेशक एवं चर्चित साहित्यकार कृष्ण कुमार यादव ने मुहुर्त क्लैप शॉट देकर फिल्म का शुभारंभ किया।

(मुहूर्त क्लिप देते कृष्ण कुमार यादव)

फिल्म
सेंसर बोर्ड, कोलकाता रीजन के सदस्य नंद किशोर सिंह ने मुहुर्त नारियल तोड़ा। इस अवसर पर आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए डाक निदेशक कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि-"गाँधी जी की प्रासंगिकता सदैव बनी रहेगी और अपने विचारों के कारण वे सदैव जिंदा रहेंगे। काला-पानी कहे जाने वाले अंडमान के द्वीपों में वे भले ही कभी नहीं आएं हों, पर द्वीप-समूहों ने भावनात्मक स्तर पर उन्हें अपने करीब महसूस किया है। जाति-धर्म-भाषा क्षेत्र की सीमाओं से परे जिस तरह द्वीपवासी अपने में एक ‘लघु भारत ‘ का एहसास कराते हैं, वह गाँधी जी के सपनों के करीब है।“ श्री यादव ने फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों के अंडमान से लगाव पर प्रशंसा जाहिर की और आशा व्यक्त की कि ऐसी फिल्में द्वीप-समूहों की ऐतिहासिकता, प्राकृतिक सुन्दरता के साथ-साथ सेलुलर जेल जैसे क्रांति-तीर्थ स्थलों को बढ़ावा देने में भी सफल होगी।



गौरतलब है कि इस फिल्म में बालीवुड के जाने-माने चेहरे मुकुल नाग, अनुकमल, राजेश जैश, मुम्बई फिल्म उद्योग के मनोज कुमार यादव के अलावा स्थानीय कलाकार गीतांजलि आचार्य, कृष्ण कुमार विश्वेन्द्र, रविन्दर राव, डी0पी0 सिंह, ननकौड़ी के रशीद, पर्सी आयरिश मेयर्श तथा पोर्टब्लेयर महात्मा गाँधी स्कूल के चार बच्चे इस फिल्म में काम करेंगे।

निर्देशक नरेश चंद्र लाल ने बताया कि सेलुलर जेल के बाद महाराष्ट्र के वर्धा स्थित गाँधी आश्रम सेवा ग्राम में भी इस फिल्म की शूटिंग होगी और यह फिल्म दिसम्बर, 2010 में रिलीज होगी।

प्रस्तुति-
नरेश चन्द्र लाल
निदेशक - अंडमान पीपुल थिएटर एसोसिएशन (आप्टा)
पोर्टब्लेयर, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह

रविवार, 29 अगस्त 2010

‘राष्ट्रवाणी’ का नया अंक डॉ0 महेन्द्रभटनागर पर आधारित

राष्ट्रवाणीका नया अंक

राष्ट्रवाणी’ : कवि महेंद्रभटनागर विशेषांक : 2010
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'महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे' ने अपनी द्वि-मासिक पत्रिका 'राष्ट्रवाणी' का, लगभग एक-सौ पृष्ठों का विशेषांक, लब्ध-प्रतिष्ठ कवि महेंद्रभटनागर के काव्य-कर्तृत्व पर, प्राचार्य सु॰ मो॰ शाह के सम्पादन में, प्रकाशित किया है।

महेंद्रभटनागर हिन्दी प्रगतिवादी-जनवादी काव्य-धारा के चर्चित कवि हैं। उनका रचना-कर्म स्वतंत्रता-पूर्व प्रारम्भ होकर (सन् 1941 से) आज-तक निर्बाध रूप से गतिशील है। उनकी उन्नीस काव्य-कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं; जो अनेक विदेशी और अधिकांश भारतीय भाषाओं में अनूदित प्रकाशित हैं। ऐसे कृती रचनाकार के कर्तृत्व पर विशेषांक प्रकाशित कर, 'महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे' ने स्तुत्य कार्य किया है।

प्रस्तुत विशेषांक में महेंद्रभटनागर के काव्य-वैशिष्ट्य को उजागर करते हुए दस आलेख प्रकाशित हैं; जिनमें डा॰ सुन्दरलाल कथूरिया (महेंद्रभटनागर-विरचित काव्य 'अनुभूत-क्षण' — मानवीय जिजीविषा का निष्कम्प स्वर), डा॰ भगवानस्वरूप 'चैतन्य' ('जनकवि महेंद्रभटनागर') और आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' (महेंद्रभटनागर के गीतों में आलंकारिक सौन्दर्य') के आलेख विशेष महत्त्व के हैं। इस विशेषांक की एक अन्य विशेषता है; तेलुगु भाषी दो यशस्वी कवियों ( अजंता और सी॰ नारायण रेड्डी) से उनके काव्य का तुलनात्मक अध्ययन; जो हिन्दी-तेलुगु साहित्य के विशेषज्ञ विद्वानों प्रो॰ पी॰ आदेश्वर राव और डा॰ सूर्यनारायण वर्मा द्वारा लिखित हैं। विशेषांक में कवि महेंद्रभटनागर के दो साक्षात्कार भी प्रकाशित हैंएक — 'कविता में काम-चेतना' विषय पर डा॰ सुरेशचद्र द्विवेदी (अंग्रेज़ी के प्रोफ़ेसर प्रसिद्ध लेखक, इलाहाबाद); दूसराउनके काव्य पर शोधरत एक शोधार्थी श्री॰ विपुल जोधानी (सौराष्ट्र) द्वारा।

महेंद्रभटनागर-विरचित एक-सौ-सोलह कविताओं के प्रकाशन के फलस्वरूप प्रस्तुत विशेषांक की उपादेयता में निर्विवाद रूप से उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। कविताओं के विषयानुसार चयन से, शोधार्थियों और आलोचकों के लिए, विशेषांक अत्यधिक उपयोगी बन गया है। महेंद्रभटनागर की इन कविताओं को पाँच खडों में विभाजित किया गया है(1) समाजार्थिक यथार्थ की कविताएँ (2) जीवन-राग की कविताएँ (3) प्रणय-सौन्दर्य की कविताएँ (4) प्रकृति-सौन्दर्य की कविताएँ (5) मृत्यु-बोध से सम्बद्ध कविताएँ।

नि:संदेह, 'राष्ट्रवाणी' का प्रस्तुत 'कवि महेंद्रभटनागर-विशेषांक' ऐतिहासिक महत्त्व का प्रकाशन है; जो हमें यशस्वी कवि महेंद्रभटनागर के जीवन और काव्य-सृजन से रू--रू कराता है। काव्य-विशेषांक के मुखपृष्ठ पर प्रकाशित कवि का परिवर्द्धित आकार का चित्र उनके आकर्षक-प्रभावी व्यक्तित्व का द्योतक है; जो पाठक के मन में सहज ही आत्मीय भाव उत्पन्न करता है। संस्था के प्रमुख, प्राचार्य सु॰ मो॰ शाह जी को इस उत्कृष्ट सारस्वत आयोजन के लिए अनेक साधुवाद।

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पत्रिका प्राप्ति हेतु पता :
राष्ट्रवाणी’, राष्ट्रभाषा भवन, 387 नारायण पेठ, महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे — 411030 / महाराष्ट्र

प्रस्तुति ---
डॉ॰ अलका रानी,
हिन्दी-विभाग, आर-पी स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कमालगंज - फ़रुक़्ख़ाबाद— 209724 (उत्तर-प्रदेश)


मंगलवार, 3 अगस्त 2010

भूमंडलीकरण के दौर में भी प्रासंगिक है प्रेमचन्द का साहित्य -- संगोष्ठी रिपोर्ट

पोर्टब्लेयर में प्रेमचन्द जयंती पर संगोष्ठी

भूमंडलीकरण के दौर में भी प्रासंगिक है प्रेमचन्द का साहित्य


कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द जी की 131 वीं जयंती पर अंडमान-निकोबार द्वीप समूह की राजधानी पोर्टब्लेयर में हिंदी साहित्य कला परिषद् के तत्वाधान में संगोष्ठी का आयोजन किया गया. संगोष्ठी का विषय था- ''भूमंडलीकरण का वर्तमान सन्दर्भ और प्रेमचन्द का कथा साहित्य'' . संगोष्ठी का शुभारम्भ द्वीप-प्रज्वलन और प्रेमचन्द जी के चित्र पर माल्यार्पण द्वारा हुआ. मुख्या अतिथि के रूप में संगोष्ठी को संबोधित करते हुए चर्चित साहित्यकार और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के डाक निदेशक कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि- प्रेमचन्द के साहित्य और सामाजिक विमर्श आज भूमंडलीकरण के दौर में भी उतने ही प्रासंगिक हैं और उनकी रचनाओं के पात्र आज भी समाज में कहीं न कहीं जिन्दा हैं। प्रेमचन्द जब अपनी रचनाओं में समाज के उपेक्षित व शोषित वर्ग को प्रतिनिधित्व देते हैं तो निश्चिततः इस माध्यम से वे एक युद्ध लड़ते हैं और गहरी नींद सोये इस वर्ग को जगाने का उपक्रम करते हैं। श्री यादव ने कहा कि प्रेमचन्द ने जिस दौर में सक्रिय रूप से लिखना शुरू किया, वह छायावाद का दौर था। निराला, पंत, प्रसाद और महादेवी जैसे रचनाकार उस समय चरम पर थे पर प्रेमचन्द ने अपने को किसी वाद से जोड़ने की बजाय तत्कालीन समाज में व्याप्त ज्वलंत मुद्दों से जोड़ा। राष्ट्र आज भी उन्हीं समस्याओं से जूझ रहा है जिन्हें प्रेमचन्द ने काफी पहले रेखांकित कर दिया था, चाहे वह जातिवाद या साम्प्रदायिकता का जहर हो, चाहे कर्ज की गिरफ्त में आकर आत्महत्या करता किसान हो, चाहे नारी की पीड़ा हो, चाहे शोषण और समाजिक भेद-भाव हो। कृष्ण कुमार यादव ने जोर देकर कहा कि आज प्रेमचन्द की प्रासंगिकता इसलिये और भी बढ़ जाती है कि आधुनिक साहित्य के स्थापित नारी-विमर्श एवं दलित-विमर्श जैसे तकिया-कलामों के बाद भी अन्ततः लोग इनके सूत्र किसी न किसी रूप में प्रेमचन्द की रचनाओं में ढूंढते नजर आते हैं.


परिषद् के अध्यक्ष आर० पी0 सिंह ने संगोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए कहा कि, प्रेमचंद से पहले हिंदी साहित्य राजा-रानी के किस्सों, रहस्य-रोमांच में उलझा हुआ था। प्रेमचंद ने साहित्य को सच्चाई के धरातल पर उतारा। आज भी भूमंडलीकरण के इस दौर में इस सच्चाई को पहचानने की जरुरत है. डा० राम कृपाल तिवारी ने कहा कि प्रेमचन्द की रचनाओं में किसान, मजदूर को लेकर जो भी कहा गया, वह आज भी प्रासंगिक है. उनका साहित्य शाश्वत है और यथार्थ के करीब रहकर वह समय से होड़ लेती नजर आती हैं. जयबहादुर शर्मा ने प्रेमचन्द के जीवन पर संक्षिप्त प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्होंने जीवन और कालखंड की सच्चाई को पन्ने पर उतारा। वे सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार, जमींदारी, कर्जखोरी, गरीबी, उपनिवेशवाद पर आजीवन लिखते रहे। डी0 एम0 सावित्री ने कहा कि प्रेमचन्द का लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी का विकास संभव ही नहीं था। उन्होंने दूसरा विवाह अपनी प्रगतिशील परंपरा के अनुरूप बाल-विधवा शिवरानी देवी से करके एक नजीर गढ़ी. जगदीश नारायण राय ने प्रेमचन्द की कहानियों पर जोर देते हुए बताया कि वे उर्दू का संस्कार लेकर हिन्दी में आए थे और हिन्दी के महान लेखक बने। उनकी तुलना विश्व स्तर पर मैक्सिम गोर्की जैसे साहित्यकार से की जाती है. वे युग परिवर्तक के साथ-साथ युग निर्माता भी थे और आज भी ड्राइंग रूमी बुद्धिजीवियों की बजाय प्रेमचन्द की परम्परा के लेखकों की जरुरत है. संत प्रसाद राय ने कहा कि प्रेमचन्द भूमंडलीकरण के दौर में इसलिए भी प्रासंगिक हैं, क्योंकि वर्षों पूर्व उन्होंने जिस समाज, गरीबी प्रथा के बारे में लिखा था वह आज भी देखने को प्राय: मिलती हैं.

द्वीप लहरी के संपादक और परिषद् के साहित्य सचिव डा0 व्यासमणि त्रिपाठी ने कहा कि वे आम भारतीय के रचनाकार थे। उनकी रचनाओं में वे नायक हुए, जिसे भारतीय समाज अछूत और घृणित समझा था. उन्होंने सरल, सहज और आम बोल-चाल की भाषा का उपयोग किया और अपने प्रगतिशील विचारों को दृढ़ता से तर्क देते हुए समाज के सामने प्रस्तुत किया। इस ग्लैमर और उपभोक्तावादी संस्कृति में प्रेमचन्द की रचनाएँ आज भी जीवंत हैं क्योंकि वे आम आदमी की बाते करती हैं. अनिरुद्ध त्रिपाठी ने कहा कि प्रेमचन्द ने गांवों का जो खाका खिंचा, वह वैसा ही है. उनके चरित्र होरी, गोबर, धनिया आज भी समाज में दिख जाते हैं. भूमंडलीकरण की चकाचौंध से भी इनका उद्धार नहीं हुआ. परिषद् के प्रधान सचिव सदानंद राय ने कहा कि गोदान, गबन, निर्मला, प्रेमाश्रम जैसी उनकी रचनाएँ आज के समाज को भी उतना ही प्रतिबिंबित करती हैं. प्रेमचंद के कई साहित्यिक कृतियों का अंग्रेज़ी, रूसी, जर्मन सहित अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ। यह उनकी विश्वस्तर पर लोकप्रियता का परिचायक है. कार्यक्रम का सञ्चालन डा0 व्यासमणि त्रिपाठी व धन्यवाद परिषद् के उपाध्यक्ष शम्भूनाथ तिवारी द्वारा किया गया.

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डा0 व्यासमणि त्रिपाठी
संपादक- द्वीप लहरी
साहित्य सचिव-हिंदी साहित्य कला परिषद्, पोर्टब्लेयर
अंडमान-निकोबार द्वीप समूह

मंगलवार, 11 मई 2010

"टेम्स की सरगम" के सुरों का कृष्णार्पण

लोकार्पण

टेम्स की सरगम के सुरों का कृष्णार्पण
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मुम्बई; २५ अप्रैल श्री राजस्थानी सेवा संघ द्वारा संचालित एस जे जे टी वि.वि. झुंझनू राजस्थान ने सुप्रसिद्ध कथा लेखिका संतोष श्रीवास्तव के सधप्रकाशित उपन्यास ' टेम्स की सरगम' का लोकार्पण श्रीमती परमेश्वरी देवी दुर्गादत्त टीबड़ेवाला कालेज के प्रांगण में किया।


प्रख्यात
कवि आलोक भट्टाचार्य के ओजपूर्ण संचालन से प्रारंभ हुए इस उपन्यास का लोकार्पण करते हुए डा. पुष्पा भारती ने कहा कि यह टेम्स की सरगम के सुरों का कृष्णार्पण है। उन्होंने भारती जी के साथ बिताए अपने अमूल्य क्षणों को याद करते हुए कहा कि संतोष का यह उपन्यास पढ़ते हुए मुझे आज यह कहने में संकोच नहीं होता कि इस अद्भुत कोमल पारदर्शी प्रेम का अपनी लेखनी से संतोष ने जो वर्णन किया है, मैं वैसे ही उसी प्रेम से गुजरी हूं। और यह प्रेम का एहसास ही इसमें वर्णित है। संतोष के इस उपन्यास में इतिहास धड़क रहा है। इसमें भक्ति मार्ग, ग्यान मार्ग का संगम है।


कथाकार ओमा शर्मा ने उपन्यास पर अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि लेखिका के पास उपन्यास कला है । कथानक कहीं ठहरता नहीं है, भाषा कभी गूढ़ या अमूर्त नहीं होती है। पात्रों के बातचीत के बीच वे अपनी भाषा के माध्यम से उस अनकही को रचती हैं जो कथा की भरपाई करती है।

कथाकार प्रमिला वर्मा ने अपने कथन में लेखिका के साथ जिए रचना क्षणों को याद कर सभी को अभिभूत कर दिया। उपन्यास के विविध प्रसंगों की नौरस में टी.वी. कलाकार रवि राजेश ने भावपूर्ण प्रस्तुति की। यह लोकार्पण के इतिहास में एक अद्भुत प्रयोग था। वरिष्ठ लेखक धीरेन्द्र अस्थाना ने उपन्यास की चर्चा को आगे बढा़ते हुए कहा कि इतिहास के प्रांगण में प्रवेश कर कुछ बटोर लाने के लिए लेखिका का साहस सलाम का हकदार है।

उपन्यास की लेखिका सुप्रसिद्ध कथाकार संतोष श्रीवास्तव ने अपने मनोगत वक्तव्य में उपन्यास की रचना के क्षणों को बताते हुए अपने कोलकाता व लंदन के प्रवास के शोधकार्य को प्रस्तुत किया। सतना से आए वरिष्ठ साहित्यकार प्रह्लाद अग्रवाल ने अपने संक्षिप्त वक्तव्य में कहा कि जब किसी रचना में प्रेम का अद्भुत तत्व मन को भिगो देता है तो बाकी सारी घटनाएं निरर्थक हो जाती हैं। मैंने लेखिका का साहित्य शुरु से पढ़ा है और मैं लेखिका का प्रशंसक रहा हूं।

हिन्दी साहित्यकारों के बीच उर्दू के साहित्यकारों का आना समारोह में चार चांद लगा गया। साप्ताहिक उर्दू कौमी पैगाम के पत्रकार निसार अहमद, मलिक अकबर, मुंब्रा से आए शायर समीर फ़ैजी एवं समाज सेवक अनवर मोहम्मद खान ने लेखिका को पुष्प गुच्छ भेंट कर अपनी शुभकामनाएं दीं। तथा उनके सम्मान में अनवर मोहम्मद खान ने शेर पढ़े।

विशेष अतिथि चर्चित कथाकार सुधा अरोड़ा ने इस उपन्यास की चर्चा करते हुए कहा कि इसमें इतिहास झांकता है। लेखिका इतिहास की छात्रा रह चुकी हैं तो इतिहास को बखूबी पेश करना उन्हें आता है। इसमें आज की नारी का चरित्र उभरकर सामने आता है। अध्यक्ष विनोद टीबड़ेवाला [ कुलपति -एस जे जे टी वि.वि.] ने कहा कि उन्होंने जब यह उपन्यास हाथ में लिया तो बिना पूरा पढ़े वे सो भी नहीं पाए। वे एक पाठक के दृष्टिकोण से कहते हैं कि इस उपन्यास की पकड़ ही इतनी मजबूत है।

हेमंत फ़ाउंडेशन की सदस्य तथा लेखिका सुमीता केशवा ने सबके प्रति अपना आभार प्रकट किया। देवी नागरानी ने अपने सुमधुर कंठ से सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। कार्यक्रम में भारी संख्या में मुंबई के पत्रकार संपादक तथा प्रतिष्ठित एवं नवोदित साहित्यकारों का अपनी गरिमामयी उपस्थिति दर्ज़ कराना यह सिद्व करता है कि साहित्य इस सदी के सर्वोच्च शिखर पर है।

प्रस्तुति- सुमीता केशवा
ई-मेल से प्राप्त जानकारी


बुधवार, 5 मई 2010

raag samvedan

Raag Samvedan New

मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

राजनीती विज्ञान परिषद् की बैठक संपन्न -- कुछ महत्वपूर्ण निर्णय

कानपुर विश्वविद्यालय परिसर में परिषद् की बैठक दिनांक २३ अप्रेल २०१० को अध्यक्ष डा ० आदित्य कुमार की अध्यक्षता में संपन्न हुई जिसमें निम्नाकित विन्दुओं पर विचार किया गया -

१. दिनांक २० फरवरी को परिषद् कार्यकारिणी की कार्यवाही की पुष्टि की गयी ।
२. परिषद के पंजीकरण की प्रक्रिया में के लिये डा ० प्रवीण कुमार ( मेरठ ) को अधिकृत किया गया ।
३.परिषद् द्वारा प्रकाशित journal 'U P Journal Of Political Science ' को पुनः अपने पुराने स्तर के अनुरूप प्रकाशित करने की आवश्यकता को महसूस करते हुए कार्यकारिणी के सदस्यों ने गहन मंथन किया। Chief Editor डा .आशुतोष सक्सेना को निर्देशित किया गया कि वे गत कार्यकारिणी में किये निर्णय के अनुसार अतिशीघ्र संपादन मंडल ,परामर्श मंडल एवं प्रबंधमंडल का गठन वरिष्ठ एवं सक्रिय साथियों से विचार -विमर्श कर अध्यक्ष को सूचित करें। Journal की आजीवन सदस्यता एक हजारनिर्धरित की गयी ।एवं इसके एकत्रीकरण के लिये सदस्यों से सहयोग की अपील की गयी ।

४. परिषद् को प्रदेशव्यापी आधार देने एवं सक्रिय करने के उददेश्य से गत कार्यकारिणी द्वारा' विशेष आमंत्रित सदस्यों' डा . के रूप में स्वीकृत निम्नाकित नामों की पुष्टि की गयी-

डा .अशोक उपाध्याय (B H U), डा .आर .के. मिश्रा एवं डा .एस .के .द्विवेदी ( लखनऊ वि , .वि .),डा .आलोक पंत ( इलाहाबाद वि .वि .),डा .रिपु सूदन सिंह ( अम्बेदकर केन्द्रीय वि. वि . लखनऊ ), डा.नन्द लाल ( काशीविद्यापीठ ,बनारस ),डा .शैलेश मिश्र ( सम्पूर्णानन्द संस्कृत वि .वि . बनारस ),डा .अनिल कुमार वर्मा,डा .कुलदीप नारायण श्रीवास्तव ,डा .रंजन कुमार एवं डा .मृदुलता मिश्रा,डा. बी एन .तोदरिया ,डा.एस .सी मिश्र , ( कानपुर वि .वि .), डा .सुधीर कुमार,डा . के ड़ी सिंह , डा .सुनील कुमार ( पूर्वांचल वि .वि .),डा .वी .जी .श्रीवास्तव, डा.एस .के .कपूर, डा .शशि पुरवार ,डा. राजीव रतन द्विवेदी , डा .के .बी राम ( बुन्देलखंड वि .वि.), डा .पी एन .शर्मा ,डा .महेंद्र निगम ( आगरा वि.वि.),डा.ओ .पी सिंह ( बलरामपुर ),डा .नागेश्वर शुक्ल ( बरेली ), डा .राम लोचन यादव ( चुनार ) ,डा .बृजेश कुमार एवं डा .धीरेन्द्र कुमार ।

५ . कार्यकारिणी के रिक्त पदों पर कार्यकारिणी की पूर्व बैठक में प्रस्तावित निम्नाकित नामों की पुष्टि की गयी-

जोनल सचिव -डा. अरुणोदय बाजपेयी ;

कार्यकारिणी सदस्य - डा .रजनीकांत श्रीवास्तव,डा .किशन यादव ,डा .विनी जैन एवं डा . वी .सी .कौशिक

बैठक के समापन सत्र को संबोधित करते हुए डा. आदित्य कुमार ने परिषद् को सक्रिय बनाने एवं उसे एक अकादमिक मंच के रूप में विकसित करने के लिये प्रदेश के सभी अंचलों के प्राध्यापकों से सहयोग का आवाहन किया । बैठक का संचालन महामंत्री डा .कपिल बाजपयी ने किया ।

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

निजी कंपनी भी हो सकती है सूचना-अधिकार के दायरे में, अगर...

निजी कंपनी भी हो सकती है सूचना-अधिकार के दायरे में, अगर...

Source:
मंथन अध्ययन केन्द्र

एनटीएडीसीएल सूचना-अधिकार के दायरे में : मद्रास उच्च न्यायालय

हाल ही में पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप परियोजना से संबंधित एक महत्वपूर्ण फैसले में मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा न्यू तिरुपुर एरिया डिवेलपमट कार्पोरेशन लिमिटेड, (एनटीएडीसीएल) की याचिका खारिज कर दी गई है। कंपनी ने यह याचिका तमिलनाडु राज्य सूचना आयोग के उस आदेश के खिलाफ दायर की थी जिसमें आयोग ने कंपनी को मंथन अध्ययन केन्द्र द्वारा मांगी गई जानकारी उपलब्ध करवाने का आदेश दिया था।

एक हजार करोड़ की लागत वाली एनटीएडीसीएल देश की पहली ऐसी जलप्रदाय परियोजना थी जिसे प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत मार्च 2004 में प्रारंभ किया गया था। परियोजना में काफी सारे सार्वजनिक संसाधन लगे हैं जिनमें 50 करोड़ अंशपूजी, 25 करोड़ कर्ज, 50 करोड़ कर्ज भुगतान की गारंटी, 71 करोड़ वाटर शार्टेज फंड शामिल है। परियोजना को वित्तीय दृष्टि से सक्षम बनाने के लिए तमिलनाडु सरकार ने ज्यादातर जोखिम जैसे नदी में पानी की कमी अथवा बिजली आपूर्ति बाधित होने की दशा में भुगतान की गारंटी, भू-अर्जन/ पुनर्वास की जिम्मेदारी, परियोजना की व्यवहार्यता हेतु न्यूनतम वित्तीय सहायता, नीतिगत और वैधानिक सहायता स्वयं अपने सिर ले ली है। सार्वजनिक क्षेत्र के अधिकारियों को कंपनी में प्रतिनियुक्ति पर भी भेजा। सार्वजनिक क्षेत्र से इतने संसाधन प्राप्त करने के बावजूद भी कंपनी खुद को देश के कानून से परे मानती है।

पृष्ठभूमि

वर्ष 2007 में मंथन अध्ययन केन्द्र ने सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत आवेदन-पत्र भेजकर कंपनी द्वारा तिरुपुर में संचालित जलदाय एवं मल-निकास परियोजना के बारे में कुछ जानकारी मांगी थी। तमिलनाडु सरकार और तिरुपुर नगर निगम के साथ बीओओटी अनुबंध के तहत का काम कर रही कंपनी ने मंथन द्वारा वांछित सामान्य जानकारी देने से यह कहते हुए इंकार कर दिया था कि सूचना का अधिकार कानून के तहत वह ‘लोक प्राधिकारी’ नहीं है।

कंपनी के इस निर्णय के खिलाफ मंथन ने तमिलनाडु राज्य सूचना आयोग में अपील की थी। आयोग ने अपने 24 मार्च 2008 के आदेश में कंपनी को लोक प्राधिकारी मानते हुए उसे मंथन अध्ययन केन्द्र द्वारा वांछित सूचना उपलब्ध करवाने का आदेश दिया था। लेकिन कंपनी ने मद्रास उच्च न्यायालय में तुरंत याचिका दायर कर तमिलनाडु राज्य सूचना आयोग के आदेश को रद्द करने की अपील कर दी। उच्च न्यायालय ने कंपनी, राज्य सरकार, राज्य सूचना आयोग और मंथन अध्ययन केन्द्र की दलील सुनने के बाद 6 अप्रैल 2010 को अपने विस्तृत आदेश में पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप से संबंधित संवैधानिक, वित्तीय, संचालन, सार्वजनिक सेवा आदि पर प्रकाश डालते हुए सिद्ध किया कि कंपनी द्वारा समाज को दी जाने वाली सेवा के लिए ऐसी परियोजना सार्वजनिक निगरानी में होनी चाहिए। जस्टिस के. चन्दू के एकल पीठ ने कंपनी की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि राज्य सूचना आयोग के फैसले में कोई असंवैधानिकता या कमी नहीं है।

प्रकरण से संबंधित तथ्य को ध्यान में रखते हुए उच्च न्यायालय के फैसले में कहा गया है कि अपीलार्थी (कंपनी) सूचना का अधिकार कानून की धारा 2 (एच) (डी) (1) के तहत लोक प्राधिकारी है। इसलिए राज्य सूचना आयोग का आदेश एकदम सही है।

उच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार जब सरकार नगर निकाय की तरह आवश्यक सेवा कार्य खुद करने के बजाय याची कंपनी जैसी किसी कंपनी को पर्याप्त वित्त पोषण (Substantially financed) देकर उसे काम करने की मंजूरी देती है तो कोई भी इसे निजी गतिविधि नहीं मान सकता है। बल्कि ये पूरी तरीके से सार्वजनिक गतिविधि है और इसमें किसी को भी रूचि हो सकती है।

फैसले में उल्लेख है कि कंपनी की आवश्यक गतिविधि जलदाय और मल-निकास है जो नगर निकाय के समान है। ऐसे में कंपनी यह दावा कैसे कर सकती है की वह समुचित सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं है। पर्याप्त वित्त के बारे में तो कंपनी ने स्वीकार किया है कि कंपनी के कुल पूँजी निवेश में सरकार का हिस्सा 17.04% है। ऐसे में यह स्पष्ट नहीं है की कंपनी कैसे तर्क करती है कि वह राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं है। केवल अंशधारक का Articles of Association दिखाने और यह कहने मात्र से की वह न तो सरकार द्वारा नियंत्रित है और न ही पर्याप्त वित्त पोषित है, कंपनी सूचना का अधिकार कानून के दायरे से बाहर नहीं हो सकती है।

फैसले में रेखांकित किया गया है कि पूर्व स्वीकृति के बाद नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) भी कंपनी के हिसाब- किताब का लेखा परीक्षण कर सकता है। ऊपरोक्त के प्रकाश में कंपनी यह तर्क नहीं दे सकती की वह सूचना का अधिकार कानून के तहत “लोक प्राधिकारी” नहीं है। इसके विपरीत कंपनी राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित एवं पर्याप्त वित्त पोषित है।

फैसले में कहा गया है कि जब संविधान ने ऐसी गतिविधियों के लिए स्थानीय निकाय के बारे में आदेश दिया है तथा राज्य सरकार ने जलदाय और मल-निकास जैसे आवश्यक कार्य के लिए नगर निकाय बनाए हैं और जब ये कार्य अन्य व्यावसायिक समूह को सौंपे जाते हैं, ऐसे में यह निश्चित है कि वे व्यावसायिक समूह नगर निकाय की तरह ही हैं। इसलिए हर नागरिक ऐसे समूह की कार्य प्रणाली के बारे में जानने का अधिकार रखता है। कहीं ऐसा न हो की बीओटी काल में ये कंपनियां लोगों का शोषण करती रहें इसलिए इन्हें अपनी गतिविधियों की जानकारी देते रहना चाहिए। उनकी गतिविधियों में पारदर्शिता और लोगों के जानने के अधिकार को सिर्फ इसलिए नहीं रोका जा सकता कि कंपनी ने राज्य सूचना आयोग से ऐसा आग्रह किया है।

यह स्पष्ट है कि राज्य के अतिरिक्त भी जब कोई निजी कंपनी सार्वजनिक गतिविधि संचालित करती है तो पीड़ित व्यक्ति के लिए न सिर्फ सामान्य कानून में बल्कि संविधान की धारा 226 के तहत याचिका के माध्यम से भी इसके समाधान का प्रावधान है। लोक प्राधिकारी होना इस बात पर निर्भर करेगा कि उसके द्वारा किया जाना वाला काम लोक सेवा है अथवा नहीं ।

हमारा मानना है कि मद्रास उच्च न्यायालय का यह आदेश पानी संबंधी सेवा और संसाधन के निजीकरण पर निगरानी कर रहे देशभर के लोग, समूह और संगठन के लिए एक जीत है। आशा है कि यह आदेश निजी कंपनियों द्वारा सार्वजनिक धन और सार्वजनिक संसाधन की लूट पर नजर रखने की प्रक्रिया में काफी उपयोगी साबित होगा।

मंथन अध्ययन केन्द्र, दशहरा मैदान रोड़, बड़वानी (मध्य प्रदेश)

नई आज़ादी द्वारा मेल से प्राप्त इस खबर को यहाँ क्लिक कर मूल रूप में देखा जा सकता है

सोमवार, 19 अप्रैल 2010

अंजू दुआ जैमिनी को भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान प्रदान

प्रसिद्ध साहित्यकार अंजु दुआ जैमिनी को उनकी पुस्तक ‘मोर्चे पर स्त्री’ (निबन्ध संग्रह) के लिए सूचना प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वर्ष 2008 के लिए भारतेन्दु हरिश्चन्द्र सम्मान से अलंकृत किया गया। उनकी पुस्तक को नारी समस्या वर्ग में पुरस्कृत किया गया है।


मंत्रालय द्वारा नई दिल्ली में आयोजित एक भव्य समारोह में सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्रीमती अंबिका सोनी द्वारा अंजु दुआ जैमिनी को अंगवस्त्र, प्रशस्ति-पत्र एवं नकद धनराशि के रूप में दस हजार रुपये प्रदान किये गये।

ध्यातव्य रहे कि लेखिका की इसी पुस्तक को अखिल भारतीय अंबिका प्रसाद दिव्य स्मृति रजत अलंकरण पुरस्कार, भोपाल के लिए भी चयनित किया गया है।

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जानकारी कमल कपूर, फरीदाबाद के पत्र द्वारा प्राप्त



शनिवार, 17 अप्रैल 2010

सम्मान

अंजू दुआ जेमिनी सम्म्मानित

गुरुवार, 25 मार्च 2010

राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों हेतु पुस्तकों का आमंत्रण

शीर्षस्थ ऐतिहासिक उपन्यासकार, कवि, चित्रकार एवं साठ महत्वपूर्ण ग्रन्थों के सर्जक स्व0 अम्बिकाप्रसाद ‘दिव्य’ की स्मृति में साहित्य सदन भोपाल द्वारा अनेक साहित्यिक पुरस्कार प्रदान किये जाने हेतु पुस्तकें आमंत्रित हैं।
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पुरस्कार निम्न विधाओं में दिये जाने हैं---

1) उपन्यास विधा हेतु ------- पाँच हजार रुपये
2) कहानी विधा हेतु ------- दो हजार एक सौ रुपये
3) काव्य विधा हेतु ------- दो हजार एक सौ रुपये
4) नाटक, व्यंग्य, ललित-निबंध,
पत्रकारिता, बाल-साहित्य,
लोक-साहित्य, लघुकथा,
शोध ग्रंथ, दिव्य साहित्य पर शोध,
समालोचना एवं साहित्यिक पत्रिकाओं हेतु -------- दिव्य रजत अलंकरण
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पुस्तकें जनवरी 2007 से दिसम्बर 2009 के मध्य प्रकाशित होनी चाहिए।
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--- पुरस्कार हेतु आवेदन के साथ प्रेषित की जाने वाली सामग्री---

1) पुस्तकों की दो प्रतियाँ
2) प्रत्येक प्रविष्टि के साथ प्रवेश शुल्क रु0 एक सौ (100/)
3) लेखक/सम्पादक के दो रंगीन चित्र
4) लेखक/सम्पादक का परिचय

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-- विशेष--

1) साहित्यिक पत्रिकाओं के तीन अंकों की दो-दो प्रतियाँ भेजनी होंगी।
2) पुस्तकों के किसी भी पृष्ठ पर कुछ भी न लिखें।
3) पुरस्कार हेतु प्राप्त पुस्तकें लौटाई नहीं जायेंगीं।
4) प्राप्त पुस्तकों, साहित्यिक पत्रिकाओं का चयन एक निर्णायक मंडल द्वारा किया जायेगा और उसका निर्णय अंतिम होगा।

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अन्तिम तिथि --- 30 नवम्बर 2010
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प्रविष्टि पहुँचाने हेतु पता --

श्रीमती राजो किंजल्क,
साहित्य सदन,
प्लाट नं0 145-ए, सांईनाथ नगर,
सेक्टर ‘सी’, कोलार,
भोपाल (म0प्र0) पिन-462042
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विस्तृत जानकारी के लिए
‘दिव्य पुरस्कार’
के संयोजक श्री जगदीश किंजल्क से
मोबाइल 09977782777 तथा दूरभाष 0755-2494777
पर सम्पर्क किया जा सकता है।

शुक्रवार, 5 मार्च 2010

महेंद्रभटनागर 'साहित्यवाचस्पति' से अलंकृत

महेंद्रभटनागर 'साहित्यवाचस्पति' से अलंकृत
ग्वालियर।
हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग के प्रधानमंत्री विभूति मिश्र की सूचना के अनुसार, अपने जगन्नाथपुरी-अधिवेशन (२३ फ़रवरी २०१०) में डा. महेंद्रभटनागर को अपने सर्वोच्च अलंकरण 'साहित्यवाचस्पति' से अलंकृत किया है। उल्लेखनीय है कि हिन्दी के प्रगतिवादी आन्दोलन के शीर्ष कवियों में शुमार डा. महेंद्रभटनागर की रचनाओं के अनुवाद केवल भारतीय भाषाओं में ही नहीं; विश्व-भाषाओं में भी हुए हैं। ८४ वर्ष की दीर्घ आयु में भी आज वे एक युवा की भाँति लेखन-क्रम में सक्रिय हैं। हिन्दी और ग्वालियर के गौरव-पुरुष हैं वे।
— शैवाल सत्यार्थी
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ई-मेल से प्राप्त सूचना के आधार पर

शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010

अहिंसक सत्याग्रहियों पर हमला

अहिंसक सत्याग्रहियों पर हमला
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भावनगर 20 फरवरी 2010। गुजरात के भावनगर जिले के महुआ तहसील में हरे-भरे उपजाऊ कृषि जमीन पर प्रस्तावित निरमा सिमेंट फैक्टरी के खिलाफ गांधीवादी स्थानीय विधायक कनू भाई कलसारिया के अगुवाई में मौन जुलूस मार्च कर रही जनता पर निरमा कंपनी के दलालों और पुलिस द्वारा कातिलाना हमला किया गया जिसमें वे और उनकी पत्नी दोनों घायल हैं। हमले में सैकड़ों लोग घायल हुए हैं। और दर्जनों लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। निरमा सिमेंट फैक्टरी के खिलाफ चल रहे आंदोलन को प्रख्यात गांधीवादी चुन्नी भाई वैद का समर्थन प्राप्त है।

उधर आसाम की राजधानी गुवाहाटी में सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष डॉ. सुगन बरंठ की अध्यक्षता में सम्पन्न राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में सर्वसम्मति से गुजरात पुलिस एवं निरमा कंपनी द्वारा किये गये इस जघन्य कृत्य का कड़े शब्दों में विरोध करते हुए इस आंदोलन के प्रति समर्थन व्यक्त किया गया। प्रस्ताव में सभी हमलावरों पर शीघ्रातिशीघ्र कानूनी कार्रवाई करने, सभी गिरफ्तार सत्याग्रहियों को रिहा करने एवं सीमेंट कंपनी को दी गयी मंजूरी को रद्द करने की मांग की गयी है।

ज्ञातव्य है कि भावनगर जिले के महुआ तहसील में गुजरात सरकार निरमा सीमेंट फैक्ट्री के लिए 15 गांवों की करीब 10 हजार एकड़ जमीन अधिग्रहित कर रही है। अधिग्रहण के कारण करीब 40 हजार लोगों की आजीविका छिन जायेगी एवं पर्यावरण पर गंभीर संकट उपस्थित होगा। कुछ ही वर्ष पहले इस क्षेत्र में गुजरात सरकार द्वारा 60 करोड़ रुपये खर्च कर चार छोटे बांध बनाये गये हैं, जिससे वर्षा-जल का संचय होता है और लोगों को पेयजल व कृषि के लिए पानी मिलता है। इस सीमेंट फैक्ट्री के बनने से यह सारा समाप्त हो जायेगा।

सर्व सेवा संघ मानता है कि लोकतंत्र में सभी को अपनी बात कहने एवं अहिंसक विरोध करने का संवैधानिक अधिकार है। ऐसे में किसी के द्वारा भी इसपर किया गया हमला संविधान पर हमला है।

25 फरवरी 2010 को प्रभावित गांवों के ग्यारह हजार एक सौ ग्यारह लोग साबरमती गांधी आश्रम, अहमदाबाद से गुजरात की राजधानी गांधीनगर तक मार्च करेंगे, जहां वे अपने रक्तों के हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन गुजरात सरकार को सौंपेंगे। सर्व सेवा संघ इस मार्च में शामिल होकर समर्थन करेगा।

महादेव विद्रोही
महामंत्री

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ये खबर साभार यहाँ से प्राप्त हुई है