मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

राजनीती विज्ञान परिषद् की बैठक संपन्न -- कुछ महत्वपूर्ण निर्णय

कानपुर विश्वविद्यालय परिसर में परिषद् की बैठक दिनांक २३ अप्रेल २०१० को अध्यक्ष डा ० आदित्य कुमार की अध्यक्षता में संपन्न हुई जिसमें निम्नाकित विन्दुओं पर विचार किया गया -

१. दिनांक २० फरवरी को परिषद् कार्यकारिणी की कार्यवाही की पुष्टि की गयी ।
२. परिषद के पंजीकरण की प्रक्रिया में के लिये डा ० प्रवीण कुमार ( मेरठ ) को अधिकृत किया गया ।
३.परिषद् द्वारा प्रकाशित journal 'U P Journal Of Political Science ' को पुनः अपने पुराने स्तर के अनुरूप प्रकाशित करने की आवश्यकता को महसूस करते हुए कार्यकारिणी के सदस्यों ने गहन मंथन किया। Chief Editor डा .आशुतोष सक्सेना को निर्देशित किया गया कि वे गत कार्यकारिणी में किये निर्णय के अनुसार अतिशीघ्र संपादन मंडल ,परामर्श मंडल एवं प्रबंधमंडल का गठन वरिष्ठ एवं सक्रिय साथियों से विचार -विमर्श कर अध्यक्ष को सूचित करें। Journal की आजीवन सदस्यता एक हजारनिर्धरित की गयी ।एवं इसके एकत्रीकरण के लिये सदस्यों से सहयोग की अपील की गयी ।

४. परिषद् को प्रदेशव्यापी आधार देने एवं सक्रिय करने के उददेश्य से गत कार्यकारिणी द्वारा' विशेष आमंत्रित सदस्यों' डा . के रूप में स्वीकृत निम्नाकित नामों की पुष्टि की गयी-

डा .अशोक उपाध्याय (B H U), डा .आर .के. मिश्रा एवं डा .एस .के .द्विवेदी ( लखनऊ वि , .वि .),डा .आलोक पंत ( इलाहाबाद वि .वि .),डा .रिपु सूदन सिंह ( अम्बेदकर केन्द्रीय वि. वि . लखनऊ ), डा.नन्द लाल ( काशीविद्यापीठ ,बनारस ),डा .शैलेश मिश्र ( सम्पूर्णानन्द संस्कृत वि .वि . बनारस ),डा .अनिल कुमार वर्मा,डा .कुलदीप नारायण श्रीवास्तव ,डा .रंजन कुमार एवं डा .मृदुलता मिश्रा,डा. बी एन .तोदरिया ,डा.एस .सी मिश्र , ( कानपुर वि .वि .), डा .सुधीर कुमार,डा . के ड़ी सिंह , डा .सुनील कुमार ( पूर्वांचल वि .वि .),डा .वी .जी .श्रीवास्तव, डा.एस .के .कपूर, डा .शशि पुरवार ,डा. राजीव रतन द्विवेदी , डा .के .बी राम ( बुन्देलखंड वि .वि.), डा .पी एन .शर्मा ,डा .महेंद्र निगम ( आगरा वि.वि.),डा.ओ .पी सिंह ( बलरामपुर ),डा .नागेश्वर शुक्ल ( बरेली ), डा .राम लोचन यादव ( चुनार ) ,डा .बृजेश कुमार एवं डा .धीरेन्द्र कुमार ।

५ . कार्यकारिणी के रिक्त पदों पर कार्यकारिणी की पूर्व बैठक में प्रस्तावित निम्नाकित नामों की पुष्टि की गयी-

जोनल सचिव -डा. अरुणोदय बाजपेयी ;

कार्यकारिणी सदस्य - डा .रजनीकांत श्रीवास्तव,डा .किशन यादव ,डा .विनी जैन एवं डा . वी .सी .कौशिक

बैठक के समापन सत्र को संबोधित करते हुए डा. आदित्य कुमार ने परिषद् को सक्रिय बनाने एवं उसे एक अकादमिक मंच के रूप में विकसित करने के लिये प्रदेश के सभी अंचलों के प्राध्यापकों से सहयोग का आवाहन किया । बैठक का संचालन महामंत्री डा .कपिल बाजपयी ने किया ।

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

निजी कंपनी भी हो सकती है सूचना-अधिकार के दायरे में, अगर...

निजी कंपनी भी हो सकती है सूचना-अधिकार के दायरे में, अगर...

Source:
मंथन अध्ययन केन्द्र

एनटीएडीसीएल सूचना-अधिकार के दायरे में : मद्रास उच्च न्यायालय

हाल ही में पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप परियोजना से संबंधित एक महत्वपूर्ण फैसले में मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा न्यू तिरुपुर एरिया डिवेलपमट कार्पोरेशन लिमिटेड, (एनटीएडीसीएल) की याचिका खारिज कर दी गई है। कंपनी ने यह याचिका तमिलनाडु राज्य सूचना आयोग के उस आदेश के खिलाफ दायर की थी जिसमें आयोग ने कंपनी को मंथन अध्ययन केन्द्र द्वारा मांगी गई जानकारी उपलब्ध करवाने का आदेश दिया था।

एक हजार करोड़ की लागत वाली एनटीएडीसीएल देश की पहली ऐसी जलप्रदाय परियोजना थी जिसे प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत मार्च 2004 में प्रारंभ किया गया था। परियोजना में काफी सारे सार्वजनिक संसाधन लगे हैं जिनमें 50 करोड़ अंशपूजी, 25 करोड़ कर्ज, 50 करोड़ कर्ज भुगतान की गारंटी, 71 करोड़ वाटर शार्टेज फंड शामिल है। परियोजना को वित्तीय दृष्टि से सक्षम बनाने के लिए तमिलनाडु सरकार ने ज्यादातर जोखिम जैसे नदी में पानी की कमी अथवा बिजली आपूर्ति बाधित होने की दशा में भुगतान की गारंटी, भू-अर्जन/ पुनर्वास की जिम्मेदारी, परियोजना की व्यवहार्यता हेतु न्यूनतम वित्तीय सहायता, नीतिगत और वैधानिक सहायता स्वयं अपने सिर ले ली है। सार्वजनिक क्षेत्र के अधिकारियों को कंपनी में प्रतिनियुक्ति पर भी भेजा। सार्वजनिक क्षेत्र से इतने संसाधन प्राप्त करने के बावजूद भी कंपनी खुद को देश के कानून से परे मानती है।

पृष्ठभूमि

वर्ष 2007 में मंथन अध्ययन केन्द्र ने सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत आवेदन-पत्र भेजकर कंपनी द्वारा तिरुपुर में संचालित जलदाय एवं मल-निकास परियोजना के बारे में कुछ जानकारी मांगी थी। तमिलनाडु सरकार और तिरुपुर नगर निगम के साथ बीओओटी अनुबंध के तहत का काम कर रही कंपनी ने मंथन द्वारा वांछित सामान्य जानकारी देने से यह कहते हुए इंकार कर दिया था कि सूचना का अधिकार कानून के तहत वह ‘लोक प्राधिकारी’ नहीं है।

कंपनी के इस निर्णय के खिलाफ मंथन ने तमिलनाडु राज्य सूचना आयोग में अपील की थी। आयोग ने अपने 24 मार्च 2008 के आदेश में कंपनी को लोक प्राधिकारी मानते हुए उसे मंथन अध्ययन केन्द्र द्वारा वांछित सूचना उपलब्ध करवाने का आदेश दिया था। लेकिन कंपनी ने मद्रास उच्च न्यायालय में तुरंत याचिका दायर कर तमिलनाडु राज्य सूचना आयोग के आदेश को रद्द करने की अपील कर दी। उच्च न्यायालय ने कंपनी, राज्य सरकार, राज्य सूचना आयोग और मंथन अध्ययन केन्द्र की दलील सुनने के बाद 6 अप्रैल 2010 को अपने विस्तृत आदेश में पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप से संबंधित संवैधानिक, वित्तीय, संचालन, सार्वजनिक सेवा आदि पर प्रकाश डालते हुए सिद्ध किया कि कंपनी द्वारा समाज को दी जाने वाली सेवा के लिए ऐसी परियोजना सार्वजनिक निगरानी में होनी चाहिए। जस्टिस के. चन्दू के एकल पीठ ने कंपनी की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि राज्य सूचना आयोग के फैसले में कोई असंवैधानिकता या कमी नहीं है।

प्रकरण से संबंधित तथ्य को ध्यान में रखते हुए उच्च न्यायालय के फैसले में कहा गया है कि अपीलार्थी (कंपनी) सूचना का अधिकार कानून की धारा 2 (एच) (डी) (1) के तहत लोक प्राधिकारी है। इसलिए राज्य सूचना आयोग का आदेश एकदम सही है।

उच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार जब सरकार नगर निकाय की तरह आवश्यक सेवा कार्य खुद करने के बजाय याची कंपनी जैसी किसी कंपनी को पर्याप्त वित्त पोषण (Substantially financed) देकर उसे काम करने की मंजूरी देती है तो कोई भी इसे निजी गतिविधि नहीं मान सकता है। बल्कि ये पूरी तरीके से सार्वजनिक गतिविधि है और इसमें किसी को भी रूचि हो सकती है।

फैसले में उल्लेख है कि कंपनी की आवश्यक गतिविधि जलदाय और मल-निकास है जो नगर निकाय के समान है। ऐसे में कंपनी यह दावा कैसे कर सकती है की वह समुचित सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं है। पर्याप्त वित्त के बारे में तो कंपनी ने स्वीकार किया है कि कंपनी के कुल पूँजी निवेश में सरकार का हिस्सा 17.04% है। ऐसे में यह स्पष्ट नहीं है की कंपनी कैसे तर्क करती है कि वह राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं है। केवल अंशधारक का Articles of Association दिखाने और यह कहने मात्र से की वह न तो सरकार द्वारा नियंत्रित है और न ही पर्याप्त वित्त पोषित है, कंपनी सूचना का अधिकार कानून के दायरे से बाहर नहीं हो सकती है।

फैसले में रेखांकित किया गया है कि पूर्व स्वीकृति के बाद नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) भी कंपनी के हिसाब- किताब का लेखा परीक्षण कर सकता है। ऊपरोक्त के प्रकाश में कंपनी यह तर्क नहीं दे सकती की वह सूचना का अधिकार कानून के तहत “लोक प्राधिकारी” नहीं है। इसके विपरीत कंपनी राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित एवं पर्याप्त वित्त पोषित है।

फैसले में कहा गया है कि जब संविधान ने ऐसी गतिविधियों के लिए स्थानीय निकाय के बारे में आदेश दिया है तथा राज्य सरकार ने जलदाय और मल-निकास जैसे आवश्यक कार्य के लिए नगर निकाय बनाए हैं और जब ये कार्य अन्य व्यावसायिक समूह को सौंपे जाते हैं, ऐसे में यह निश्चित है कि वे व्यावसायिक समूह नगर निकाय की तरह ही हैं। इसलिए हर नागरिक ऐसे समूह की कार्य प्रणाली के बारे में जानने का अधिकार रखता है। कहीं ऐसा न हो की बीओटी काल में ये कंपनियां लोगों का शोषण करती रहें इसलिए इन्हें अपनी गतिविधियों की जानकारी देते रहना चाहिए। उनकी गतिविधियों में पारदर्शिता और लोगों के जानने के अधिकार को सिर्फ इसलिए नहीं रोका जा सकता कि कंपनी ने राज्य सूचना आयोग से ऐसा आग्रह किया है।

यह स्पष्ट है कि राज्य के अतिरिक्त भी जब कोई निजी कंपनी सार्वजनिक गतिविधि संचालित करती है तो पीड़ित व्यक्ति के लिए न सिर्फ सामान्य कानून में बल्कि संविधान की धारा 226 के तहत याचिका के माध्यम से भी इसके समाधान का प्रावधान है। लोक प्राधिकारी होना इस बात पर निर्भर करेगा कि उसके द्वारा किया जाना वाला काम लोक सेवा है अथवा नहीं ।

हमारा मानना है कि मद्रास उच्च न्यायालय का यह आदेश पानी संबंधी सेवा और संसाधन के निजीकरण पर निगरानी कर रहे देशभर के लोग, समूह और संगठन के लिए एक जीत है। आशा है कि यह आदेश निजी कंपनियों द्वारा सार्वजनिक धन और सार्वजनिक संसाधन की लूट पर नजर रखने की प्रक्रिया में काफी उपयोगी साबित होगा।

मंथन अध्ययन केन्द्र, दशहरा मैदान रोड़, बड़वानी (मध्य प्रदेश)

नई आज़ादी द्वारा मेल से प्राप्त इस खबर को यहाँ क्लिक कर मूल रूप में देखा जा सकता है

सोमवार, 19 अप्रैल 2010

अंजू दुआ जैमिनी को भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान प्रदान

प्रसिद्ध साहित्यकार अंजु दुआ जैमिनी को उनकी पुस्तक ‘मोर्चे पर स्त्री’ (निबन्ध संग्रह) के लिए सूचना प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वर्ष 2008 के लिए भारतेन्दु हरिश्चन्द्र सम्मान से अलंकृत किया गया। उनकी पुस्तक को नारी समस्या वर्ग में पुरस्कृत किया गया है।


मंत्रालय द्वारा नई दिल्ली में आयोजित एक भव्य समारोह में सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्रीमती अंबिका सोनी द्वारा अंजु दुआ जैमिनी को अंगवस्त्र, प्रशस्ति-पत्र एवं नकद धनराशि के रूप में दस हजार रुपये प्रदान किये गये।

ध्यातव्य रहे कि लेखिका की इसी पुस्तक को अखिल भारतीय अंबिका प्रसाद दिव्य स्मृति रजत अलंकरण पुरस्कार, भोपाल के लिए भी चयनित किया गया है।

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जानकारी कमल कपूर, फरीदाबाद के पत्र द्वारा प्राप्त



शनिवार, 17 अप्रैल 2010

सम्मान

अंजू दुआ जेमिनी सम्म्मानित