शनिवार, 29 जनवरी 2011

संतोष श्रीवास्तव की पुस्तक --- ' मुझे जन्म दो मां' --- का लोकार्पण


' मुझे जन्म दो मां' (संतोष श्रीवास्तव) का लोकार्पण समारोह

जमीनी सच्चाईयों से जूझती किताब
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मुम्बई : १५ जनवरी २०११ को जे।जे.टी यूनिवर्सिटी झुंझुनू [राज.] के तत्वावधान में चर्चित कथा लेखिका संतोष श्रीवास्तव के नारी विमर्श पर उनकी सामयिक प्रकाशन दिल्ली से सध्य प्रकाशित पुस्तक ''मुझे जन्म दो मां'' का लोकार्पण समारोह नजमा हेपतुल्ला सभागार सांताक्रुज [पूर्व] में मुख्य अतिथि डा. करुणा शंकर उपाध्याय एवं अध्यक्ष सुधा अरोड़ा द्वारा किया गया। इसी अवसर पर हाल ही 'संगिनी' पत्रिका की संपादक और स्त्री विषयक कार्यों को अंजाम देने वाली एवं "लाडली मीडिया लाईफ़ टाईम अचीवमेंट'' से पुरस्कृत दिव्या जैन का संस्था ने विशेष सम्मान भी किया।

कार्यक्रम का प्रारंभ यूनिवर्सिटी के चांसलर श्री विनोद टीबड़ेवाला के स्वागत भाषण से हुआ। तत्पश्चात पुस्तक की प्रस्तावना देते हुए कथा लेखिका प्रमिला वर्मा ने कहा कि इस पुस्तक में लेखिका स्त्रियों के लंबे संघर्षपूर्ण इतिहास से भी टकराती हैं और कहीं इस प्रक्रिया में किए गए उपायों की बखिया भी उधेड़ती नज़र आती हैं। इस पुस्तक में ३४ लेखों का संग्रह है जो देश भर के समस्त स्त्री विषयक विमर्शों को समेटता है।

पुस्तक की लेखिका संतोष श्रीवास्तव ने अपने मनोगत भाषण में अपने आप को खुली किताब के रूप में पेश किया। उन्होंने कहा कि मैंने कोशिश की औरत से सम्बन्धित हर क्षेत्र की पड़ताल करने की पर बस एक अंश ही लिख पाई हूं। औरत के इतिहास को वर्तमान को लिखना कोई आसान काम नहीं है।

पुस्तक की विशेष चर्चा में प्रमुख वक्ता के तौर पर डा. नगमा जावेद ने पुस्तक की विवेचना की। उन्होंने कहा कि पुस्तक नारी विमर्श के सभी आयामों को प्रस्तुत करती है। इस पुस्तक में केवल वर्तमान नारी विमर्श नहीं है अपितु पिछली सदियों से चल रहे नारी विमर्श का विस्तृत वर्णन है। लेखिका ने हर क्षेत्र की महिलाओं की समस्याओं का अध्ययन बेहद विस्तार और गहराई के साथ प्रमाणों के आधार पर किया है। विशेष चर्चा में भाग ले रहे प्रोफ़ेसर डा. रवीन्द्र कात्यायन ने पुस्तक के पृष्ठ-दर पृष्ठ की चर्चा करते हुए इसे हिन्दी के लिए एक महत्वपूर्ण व अभूतपूर्व ग्रंथ माना।

पुस्तक के लोकार्पण के पश्चात मुख्य अतिथि डा. करुणा शंकर उपाध्याय ने अपने सार गर्भित संक्षिप्त भाषण में लेखिका को इस क्रान्तिकारी कदम उठाने और कलमबद्व करने के लिए बधाई दी और कहा कि यह सर्व स्वागतीय पुस्तक है। स्त्री विमर्श पर लिखी यह पुस्तक शोधार्थियों के लिए एक संदर्भ ग्रन्थ के रूप में जानी जाएगी। गहन चिंतन से पूर्ण यह पुस्तक नाम के अनुरूप हमारे समक्ष कई प्रश्न चिन्ह लगाती है और समाजिक परिवर्तन के ढांचे को बदलने की ओर इंगित करती है। कार्यक्रम के दौरान ही अपार प्रशंसा बटोरती इस पर जे.जे.टी. यूनिवर्सिटी के चांसलर श्री विनोद टीबड़ेवाला ने लेखिका संतोष श्रीवास्तव को पी एच.डी की मानद उपाधि से अलंकृत करने की घोषणा की।

टी.वी. अभिनेता और डबिंग की दुनिया का जाना पहचाना नाम सोनू पाहूजा ने पुस्तक के कुछ महत्वपूर्ण अंशों को नाटकीय रूप में पेश किया। उन्होंने गर्भपात के समय बनाई गई अल्ट्रासांउड फ़िल्म'साइलेंट स्क्रीम' का दिल दहलाने वाला विवरण पेश किया।

अध्यक्षीय भाषण प्रख्यात कथा लेखिका सुधा अरोड़ा ने कहा कि महिलाएं आज पितृसत्तात्मक और पुरुष वर्चस्व के समाज में जी रही हैं। उंगलियों पर गिने जाने वाले कुछ शीर्षस्थ नामों के बूते पर यह भ्रम नहीं पालना चाहिए कि स्त्री के बड़े तबके में सशक्तीकरण हो चुका है। भारत के न सिर्फ़ गांवों और कस्बों में बल्कि महानगर में रहने वाले आम मध्यवर्गीय तबके में भ्रूण हत्या, दहेज हत्या, बलात्कार, घरेलू हिंसा और कार्यालयों में यौन शोषण विकराल रूप में है। स्त्रियों में जागरूकता लाने के लिए उनकी समस्याओं से मुठभेड़ करती और जमीनी सच्चाई से जूझती वैचारिक पुस्तक की आज सख्त जरूरत है। संतोष की यह पुस्तक इस कसौटी पर खरी उतरती है।

सुमीता केशवा ने सभी का आभार माना तथा लेखिका के लिए दो शब्द कहते हुए उन्होंने कहा कि अब तक संतोष जी के प्यार से सराबोर उपन्यास पढ़ने को मिले हैं परन्तु अब उनकी कलम से ऐसे विस्फ़ोटक राज खुलेंगे जानकर ताज्जुब हुआ। दरअसल औरतों पर हुए जुल्मों का यह संपूर्ण दस्तावेज है।

आलोक भट्टाचार्य ने अपने कुशल संचालन के दौरान कहा कि संतोष ने इस पुस्तक में जिन सच्चाईयों का प्रामाणिक वर्णन किया है वह आज भी घटित हो रही है। समाज नहीं बदला है। समारोह में शहर से तथा बाहर से आए हुए लेखक, पत्रकार तथा साहित्य तथा साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।

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रिपोर्ट--
सुमीता केशवा

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