मंगलवार, 10 मई 2011

विजय वर्मा कथा सम्मान समारोह संपन्न -- रिपोर्ट

साहित्य का सच वास्तविक सच से भिन्न होता है : संजीव

"जबानें दिलों को जोड़ने के लिए होती हैं तोड़ने के लिए नहीं" ये उदगार पूर्व अध्यक्ष महाराष्ट्र राज्य उर्दू अकादमी के डा. अब्दुल सत्तार दलवी ने २३ अप्रैल २०११ को बेंक्वेट हाल, गोरेगांव [पूर्व] मुम्बई में हेमंत फ़ाउंडेशन द्वारा आयोजित विजय वर्मा कथा सम्मान समारोह में व्यक्त किये। उन्होंने आगे कहा- 'नौजवनों की हौसला अफ़जाई वक्त की अहम जरूरत है और यह काम हेमंत फ़ाउंडेशन बखूबी कर रहा है।' हिन्दी उर्दू के साहित्यकारों, टी.वी. कलाकारों, साहित्यप्रेमियों , मीडिया प्रेस से संलग्न तथा बाहर से आये हुए साहित्यप्रेमियों की उपस्थिति में तालियों की गड़गड़ाहट तथा संगीत की सुमधुर ध्वनि के बीच वर्ष २०११ का 'विजय वर्मा कथा सम्मान' मनोज कुमार पांडे [लखनऊ] को उनके कथा संग्रह 'शहतूत' के लिए तथा 'हेमंत स्मृति कविता सम्मान' वाजदा खान [दिल्ली] को उनके कविता संग्रह 'जिस तरह घुलती है काया' के लिए प्रमुख अतिथि श्री संजीव [कार्यकारी संपादक हंस] एवं अध्यक्ष श्री अब्दुल सत्तार दलवी ने प्रदान किया। पुरस्कार के अंतर्गत ग्यारह हजार की धनराशि,शाल,पुष्पगुच्छ, एवं स्मृति चिह्न प्रदान किया गया।


कार्यक्रम का आरंभ दीप प्रज्वलन एवं सरस्वती वंदना से हुआ। संस्था के निदेशक श्री विनोद टीबड़ेवाला एवं श्री जे.जे.टी. विश्वविद्यालय झुंझनू के कुलपति ने इस समारोह पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा- उन्हें गर्व है कि उनका विश्वविद्यालय ऐसे साहित्यिक समारोह से जुड़ा है। उन्होंने दोनों पुरस्कृत रचनाकारों का सम्मान करते हुए उन्हें युवा पीढ़ी का मील का पत्थर बताया।

संस्था की अध्यक्ष व प्रबन्धन्यासी साहित्यकार संतोष श्रीवास्तव ने ट्रस्ट का परिचय देते हुए उसकी गतिविधियों के बारे में बताते हुए कहा कि ट्रस्ट शीघ्र ही हिन्दी-उर्दू मंच तैयार करेगा ताकि दो जबानें मिलकर नए पथ का निर्माण करें।

समारोह में पुरस्कृत कविता संग्रह पर डा. करुणाशंकर उपाध्याय ने अपने वक्तव्य में कहा- वाजदाखान की कविताएं चित्र से परिपूर्ण हैं और कविताएं बिम्ब पूर्णता को दर्शाती हैं।

लेखिका डा. प्रमिला वर्मा ने संयोजक श्री भारत भारद्वाज द्वारा भेजी गई संस्तुति प्रस्तुत की। सम्मानित रचनाकार वाजदाखान ने अपनी रचनाओं का पाठ किया एवं अपने वक्तव्य पर बोलते हुए कहा - चित्रकला मेरा क्षेत्र रहा, मगर कविताओं को लिखना पढ़ना हमेशा आकर्षित करता रहा। कविताएं अन्तश्चेतना के किसी हिस्से को बड़ी ही आहिस्ता से स्पर्श करती हैं। यह जादुई स्पर्श कई-कई दिनों तक वजूद पर छाया रहता है।

मनोज कुमार पांडे ने अपने वक्तव्य में कहा कि मैं विजय वर्मा कथा सम्मान मिलने पर खुश हूं। और सचमुच सम्मानित महसूस कर रहा हूं। इसलिए भी क्योंकि यह सम्मान अपनी शुरूआत से ही विश्वसनीय रहा है और कई ऐसे कथाकारों को मिल चुका है जिनकी रचनाएं मैं गहरे लगाव के साथ पढ़ता रहा हूं।

प्रमुख अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार श्री संजीव ने अपने रोचक वक्तव्य में कहा- साहित्य का सच वास्तविक सच से भिन्न होता है। प्रगटत: मिथ्या सा लगता है लेकिन वह उस वास्तविक सत्य से ज्यादा बड़ा सत्य होता है। उदाहरण स्वरूप उन्होंने रवीन्द्रनाथ ठाकुर की काबुलीवाला का जिक्र किया जिसमें रहमत नायक जेल में १२ वर्ष गुजार कर जब घर लौटता है तो अपनी ५ वर्ष की बेटी के लिए चूड़ियां ले जाता है । उसके लिए बेटी आज भी पांच वर्ष की है। रहमत के लिए वक्त वहीं ठहर गया है। उन्होंने कहा कि ''अपने यहां किसी भी ऐतिहासिक सच से रामायण-महाभारत का सच समाज को ज्यादा प्रभावित करता रहा है।''

मनोज कुमार पांडे की कहानी 'पत्नी का चेहरा' आवाज तथा रंगमंच की दुनिया के प्रखर कलाकार सोनू पाहूजा ने अपने रोचक अंदाज में प्रस्तुत की।

कार्यक्रम का संचालन कवि आलोक भट्टाचार्य ने किया एवं समारोह का समापन लेखिका सुमीता केशवा के आभार से हुआ।

प्रेषक : सुमीता केशवा
कार्याध्यक्ष- हेमंत फ़ाउंडेशन, मुंबई.

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